Path of those have blessed







(7/7)

 صِرَاطَ الَّذِينَ أَنْعَمْتَ عَلَيْهِمْ غَيْرِ الْمَغْضُوبِ عَلَيْهِمْ وَلا الضَّالِّينَ

तर्जुमा :  सिरात (तरीका) उन लोगो का जिन पर तूने अपनी नेमत तमाम की और न ही वो मगजूब हुए (यानी उनके ऊपर तबाही और बर्बादी का वाकए होना) और न ही वो सब गुमराह हुए                                                                          

इस आयत के मखसूस अल्फाज़ जैसे सिरात, नेमत, मगजूब और ज्द्वालीन (गुमराही) ये चार अल्फाज़ को उसकी नेमत के साथ वाजेह करती है की अल्लाह की वो नेमत कौनसी है जिसे उसने अपने शवालाहीन बन्दों पर की सबब जिसके वो गजब और गुमराही से बचने वाले हो गए वो नेमत सिरातल मुस्ताकीम है जिसे कुरान इस तरह बताता है                         


وَلَقَدْ آتَيْنَا بَنِي إِسْرَائِيلَ الْكِتَابَ وَالْحُكْمَ وَالنُّبُوَّةَ وَرَزَقْنَاهُمْ مِنَ الطَّيِّبَاتِ وَفَضَّلْنَاهُمْ عَلَى الْعَالَمِينَ   (45/2)

तर्जुमा : और यक़ीनन तहकीक जानो अता की हमने बनी इसराईल को किताब (आसमानी किताब) और हिकमत (आलमी हिकमते) और नुबुबत (तमाम अम्बिया अ.है.स. भी बनी इसराईल में से)  और रिज्क (ज़मीनी इक्तिदार) दिया हमने उनको तैय्यब (जिसमे कोई खतरा लाहक़ ना हो) में से और फ़ज़ीलत (रहनुमायी करने वाला बनाया यानी आलमी ईमामत) दी हमने उनको तमाम आलम पर 

इसी अता करदा फ़ज़ीलत को अल्लाह इस किताब कुरान के जरिये से बताता है की यह वो नेमते है जिसे हमने बतौर हिदायत के यानी सिरातल मुस्ताकीम के हमने बनी इसराईल को अता की है और तमाम आलम पर हमने बनी इसराईल को ईमामत का हक दिया और उन्हें गजब और गुमराही से बचाया और तमाम आलमे इंसानियत के लिए हमने उन्हें ईमाम मुक़र्रर किया की यही वो लोग है जिन पर अल्लाह ने अपनी नेमते की और उन्हें गुमराही और गजब से बचाया जिसको कुरान इस आयत से वाजेह करता है                               


يَا بَنِي إِسْرَائِيلَ اذْكُرُوا نِعْمَتِيَ الَّتِي أَنْعَمْتُ عَلَيْكُمْ وَأَنِّي فَضَّلْتُكُمْ عَلَى الْعَالَمِينَ   (47/2)

   तर्जुमा : ऐ बनी इसराईल ज़िक्र (अपनी याद दहानी में रखो) करो हमारी उन नेमतों (किताब, हिकमत, नुबुबत, ज़मीनी इक्तिदार और फ़ज़ीलत) को वो जो हमने तुम्हारे ऊपर की और बेशक मैंने तुम्हे तमाम आलम पर फ़ज़ीलत (ईमामत) दी                       

इस आयत से यह वाजेह होता है की अल्लाह का ईनाम वो नेमते है जिसे अल्लाह ने अपने बनी इसराईल पर की और जिसकी पैरवी को तमाम आलमे इंसानियत पर जरुरी क़रार दिया की यही वो नेमते है जिसके मुताबिक अमल करके इंसान उस मनसब को हासिल कर सकता है जिस मनसब के लिए अल्लाह ने खल्क किया और उसकी रबुबियत फ़रमायी और अगर इंसान अल्लाह की इन नेमतों से ऐराज़ करता है तो यक़ीनन उसका मगजूब होना तय है तो अब हम ये जानने की कोशिश करते है की इंसान गजब का शिकार कब होता है इस मामले की कुरान क्या रहनुमायी करता है

فَإِنَّ لَكُمْ مَا سَأَلْتُمْ وَضُرِبَتْ عَلَيْهِمُ الذِّلَّةُ وَالْمَسْكَنَةُ وَبَاءُوا بِغَضَبٍ مِنَ اللَّهِ ذَلِكَ بِأَنَّهُمْ كَانُوا يَكْفُرُونَ بِآيَاتِ اللَّهِ وَيَقْتُلُونَ النَّبِيِّينَ بِغَيْرِ الْحَقِّ ذَلِكَ بِمَا عَصَوْا وَكَانُوا يَعْتَدُونَ  (61/2)

पस बेशक लिए तुम्हारे वही है जिसका तुमने सवाल किया है ( मगर अल्लाह की अता करदा नेमतों की मुखालिफत में अपनी नफ्स के लिए) और (नतीजा ये हुआ) की डाल दी गई तुम ज़िल्लत (पस्ती में जाना) और मिस्किनियत (बेबशी और लाचारी)  और बवा (जेहनी और जिस्मानी अमराज़) और इन तमाम हालातो के सबब तुम अल्लाह की तरफ से मगजूब (गजब ढाये गए) कर दिए गए इस वजेह से की तुम सब अल्लाह की आयात के मुनकिर ( झुठलाने और इनकार करने वाले) हो गए और ना हक नबियो को क़त्ल करने लगे और इस वजेह से भी की तुमसब नाफ़रमानी पर अमादा हो गए और उसकी कायम करदा हुदूदो (कवानीन) को लांघने लगे                                                                          

 इस आयत से ये नतीजा अखज होता है की जब जब इंसान अपने तही अपनी जरूरतों के लिए अता करदा जराए वसाईल से अपने तरीके पर कोई मदद हासिल करने की फिराग में रहता है तो वो गुमराही की ज़द में आ जाता है और उससे बजाये इस्तियानत हक़दार बनने के वो   अल्लाह का गजब का मुस्तहक हो जाता है जिसकी वजेह से इंसानी ज़िन्दगी ज़िल्लत, मिस्किनियत, बवा जैसे हालात की मुरतकिब हो जाती है और एक वक्त ऐसा भी आता है की उसका नाम लेवा भी कोई नहीं बचता बल्कि सफे हस्ती से उसका नाम मिटा दिया जाता है जंहा तक की वो लोगो के लिए इबरत और खौफ की वजेह बन जाता है लिहाजा हमसबको इससे सबक लेना चाहिए की हम कोई भी काम नफ्सियात की गुमराही में ना करे बल्कि अल्लाह की हिदायात में रह्कर करे क्योंकि ये जो माद्दी कायनात हम देख रहे है उसकी एक एक शकनात और हरकात में उसका हुक्म उसका अम्र पोशीदा है जो उन शकनात और हरकात का मूल सिद्धांत असल फार्मूला है जिसकी वजेह से शकनात और हरकात का जुहूर हुआ है जिससे तमाम आलमे इंसानियत को अल्लाह की मौजूदगी और उसकी वहदानियत की खबर मिलती है की ये कायनात पहले नहीं थी क्योंकि इसे खल्क किया गया है और अब चूँकि ये खल्क की गई है इसलिए ये मुशाबिहात रखती है और इस कायनात का मुताशाबेह होना यानी बा मक़सद और असर अंदाज शकनात और हरकात के साथ मुनज्ज़म होना इस बात की सच्चाई का मुशायदा कराती है की इसमें मुह्किमात का दखल है जो इस कायनात के सारे मामलात की (लीडिंग) रहनुमायी कर रही है जिससे यह साबित होता है की इस कायनात का कोई बनाने वाला है क्योंकि ये बात विज्ञान की रौशनी में हम सभी जानते है प्रसिद्ध वैज्ञानिक नयूटन की तहकीक के मुताबिक की कोई भी शैय अपने मकाम से किसी भी तरह की हरकत तब तक नहीं कर सकती है जब तक उसे उसके बाहर से हरकत ना दी जाये अलावा इसमें मेरा मानना ये है की किसी भी शैय को हरकत देने के साथ साथ यह भी जरुरी होता है की उसे उसकी हरकत के साथ तवाजुन भी दिया जाए ताकि वो सरकस ना हो जो की किसी भी शैय के अन्दर से यानी खुद शाक्ता मुमकिन ही नहीं है सिवाय एक दूसरे से इख्तिलाफ के इल्ला ये की तवाजुन में भी तजात होना लिहाज़ा इस कायनात की तमाम शकनात और हरकात के दरमियान मुनाज्जिम तवाजुन का होना उसकी वहदानियत को वाजेह करता है की इस कायनात का बनाने वाला एक अकेला खुदा-ए-यकता है जिसने इस कायनात को और कायनात की किसी भी शैय को अबस और बेकार नहीं बनाया बल्कि बा मकसद और बा असर बनाया है लिहाज़ा इंसान भी उसके मकसद के लिए है जिसे पूरा करना इंसान की फलाह और महमूद के लिए जरूरी है वरना इसका होना अबस है बेकार है इसलिए इंसान को चाहिए की वो अपने खालिक अपने मालिक की अब्दियत उसकी वहदानियत के साथ बजा लाए और उसमे किसी को शरीक ना करे और ना ही खुद अपनी नफ्स को क्योंकि उसकी वहदानियत में कोई शरीक हो भी नहीं सकता है बजाए इसके की इंसान भी अपनी शकनात और हरकात के साथ यानी उसकी मुक़र्रर करदा हम्द (कायनात की तमाम शकनात और हरकात का उसके हुक्म (इज़्न) के मुताबिक होना) के साथ उसकी तसबीह करे और उसकी वहदानियत को मुक़द्दस (किसी भी तरह के कौल और फ्येल को उसकी वेह्दानियत में शरीक करने से बाज़ रहना) करे ताकि     इंसान उसकी अब्दियत में अपनी रजामंदी से पूरी अक्ल और शऊर के साथ दाखिल हो सके इसलिए अल्लाह ने इन सात इशारे (सूरेह फातिहा) में वाजेह तौर पर इस कायनात और इंसान के मुताबिक अपने मकसद को पेश कर दिया है की अल्लाह ने इस कायनात को क्यों बनाना और किसलिए अल्लाह ने इस कायनात के दरमियान इंसान को आबाद किया और उसे वो सिखाया जो वो जानता नहीं था  

“व आखिरुद दवाना अनिल्हुम्दुलिल्लाही”






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