اهْدِنَا الصِّرَاطَ الْمُسْتَقِيمَ (6/1)
तर्जुमा : हिदायत (अल्लाह के लिए अल्लाह के इज़्न के मुताबिक कार करना पूरी तरह से मुस्लिम होकर) दे हमे रास्ते (तरीका) की वो जो सीधा और साबित है
इस आयत के मुताबिक हमे सबसे पहले ये जानने की जरुरत है की हिदायत क्या है और क्यों है उसके बगैर इंसानी कामयाबी और कामरानी न मुमकिन है सिवाय उस धोखे की तरह की इंसान ये सोचे की देखने के लिए उसकी बिनाई बस काफी है और वो ये जानने की कोशिश न करे की आँखों की बिनाई काफी है भी या नहीं, कभी भी नहीं हमारे लिए काफी नहीं हो सकती है तब तक जब तक हमे देखने के लिए और जराए मुहैय्या न हो जैसे बाहरी रौशनी, जाहिरी तस्वीरे और उसके साथ साथ उसका इस्म यानी अल्फाज़ जिसकी बिना पर हम किसी चीज को देख सकते है अपनी बसीरत में ले सकते है लिहाज़ा तमाम जराए और वसाईल भी हमारे लिए काफी नहीं है बगैर अल्लाह की हिदायत के और हिदायत दरअसल इंसान के जज़्बातो के अन्दर उन्सियत का बेदार होना है रूह के कमाल और जमाल के साथ नफ्स में उठने वाले जज़्बात मुहब्बत, शफक्कअत, मुआफकत, सुजाअत, अदालत, किफ़ालत, सफायत, दियानत, अमानत, सदाकत इन्साफ, क़ुरबानी, रहम, मेहरबानी, अहसान, वफ़ा, जैसे मुख्तलिफ खूबियों के साथ जब खैर की तरफ रुख करते है मगर अल्लाह के इज़्न के साथ तो वह हिदायत है और हिदायत के लिए कुरान ने एक शनाक्त भी पेश की है वो है सिरातल मुस्ताकीम जो की हिदायत कैसी होनी चाहिए वो बताता है अब सवाल ये उठता है की सिरातल मुस्ताकीम क्या है जिसके बगैर हिदायत की शनाक्त नहीं हो सकती है तो सबसे पहले हम मुस्ताकीम को समझे
وَإِنَّ ٱللَّهَ رَبِّى وَرَبُّكُمْ فَٱعْبُدُوهُ ۚ هَـٰذَا صِرَٰطٌۭ مُّسْتَقِيمٌۭ ٣٦ (36/19)
तर्जुमा : और बेशक अल्लाह मेरा रब (खालिक और मालिक) है और तुम सबका भी रब (खालिक और मालिक) है इसलिए तुमसब को उसी की इबादत (अल्लाह के इज़्न से उसके अता करदा जराए और वसाईल को बरतन) करो यही सिरातल मुस्ताकीम (साबितशुदा तरीका) है
जैसा की इस आयत में वाजेह किया गया है की सिरातल मुस्ताकीम क्या है तो आइए पहले तो हम मुस्ताकीम को समझने की कोशिश करते है “मुस्ताकीम” दरअसल कियाम से बना है जिसका मतलब एक बेहतर नतीजे के साथ साबित की हुई हिदायत यानी “नतीजा साबितशुदा” रहनुमायी जो की इंसान के द्वारा चुने गए रास्ते और किये गए अमालो की खैर और शर के हासिल दोनो नताइज यानी को वक्त और हालात से साबित करती है और उसको तमाम इंसानियत के लिए बाइसे इबरत और बाइसे बशारत बना देती है इसी को कुरान के मुताबिक मुस्ताकीम कहते है अब सवाल ये उठता है की साबित नतीजे (बतौर खबर) को किस तरह हासिल किया कि इंसान अपनी ज़िन्दगी में बेहतर फैसला लेने पोजीशन में आ जाये चूँकि हमने ये तो जान लिया है की बगैर हिदायत के इंसान कही भी कामयाबी और कामरानी (फलह) को हासिल नहीं कर सकता है और ये भी की हिदायत का मुस्ताकीम (बतौर इंसानी अमाल के जो नतीजा साबित हो चूका है) होना भी जरुरी है मगर उसके साथ साथ सिरात यानी उसका तरीका भी इंसान को मालूम होना चाहिए की किस तरह वो हिदायात के मुताबिक अपने अमाल को इस तरह अंजाम दे की वो अपने अमाल के सबब बेहतर नतीजा अखज कर सके नाकी वो हिदायत और उसके तमाम सबूत उस तक एक खबर बस बनकर रह जाये इसके लिए कुरान ने उसे वो सिरात यानी तरीका भी बताया है जिस तरीके से इंसान अल्लाह की पैदा करदा नेमतों का हिस्सेदार बन सकता है और उस रास्ते के शर (गुमराही) से बच सके लिहाजा इस आयात में इंसान ने अपने खालिक और मालिक की हैसियत रखने वाले रब से वाजेह तौर पर उसकी नफ्सियात में और कायनात में इस्तिकामत किये हुए यानी कायम किये हुए असरंदाज़ पोशीदा तरीके की हिदायत, उसकी रहनुमायी तलब की है ये इंसान का उसके रब की तरफ एक सवाल है एक दुआ है जिस सवाल के लिए इंसान ने हुज्जत सूरेह फातिहा की आयत 5 को बनाया है की हम खालिस तेरी ही अब्दियत (अक्ल और शऊर के साथ अल्लाह के इज़्न की इताअत और इतित्बा) में है और खालिस तेरे से ही इस्तियानत (जराए और वसाईल मगर अल्लाह की हिदायत के साथ) तलब करते है चूँकि इंसान ने अपने रब से इस्तियानत तलब की उसकी वाजेह हिदायात के साथ तो अल्लाह ने उसे उसका जवाब दिया सूरेह फातिहा की आखरी आयत नंबर 7 में दे दी जिसे आगे बयान किया जा रहा है I