QURAN KYA KEHTA HAI AL-REHMAN KE BARE ME









 (अर-रहमा)

अर-रहमान, अल्लाह की वो सिफ़ते ख़ास, जिसने इस कायनात मे मौजूद तमाम मोहर्रिक शय के कानून क़वानीन और उसके सिद्धांत को बनाया है जिसके साथ इंसान की रहनुमाई की गई हैं जिसे आयते मुहकीमात कहते है, जिसपर इस कायनात का निज़ाम कायम

"है और "यही उसका सिरातल मुस्तकीम है


لِ ٱدْعُوا۟ ٱللَّهَ أَوِ ٱدْعُوا۟ ٱلرَّحْمَـٰنَ ۖ أَيًّۭا مَّا تَدْعُوا۟ فَلَهُ ٱلْأَسْمَآءُ ٱلْحُسْنَىٰ ۚ وَلَا تَجْهَرْ بِصَلَاتِكَ وَلَا تُخَافِتْ بِهَا وَٱبْتَغِ بَيْنَ ذَٰلِكَ سَبِيلًۭا 110/17

कहदो तुम अल्लाह को पुकारो या रहमान को पुकारो तो जिस नाम से भी उसे तुम पुकारोगे उसके लिए उसके सभी नामो को बा हुस्न पाओग


तमाम तारीफे उस पाक परवरदिगार के लिए जिसने अपने इल्म और हिक़मत से इन्तिजामे रबुबियत मे तमाम आलामीन को मुह्किम किया यानी यूनिवर्सल सिद्धांत दिया जो की तीन के जोड़े में है 

  1. हर एक चीज मैटर और नॉन मैटर की बनी है l

  2. हर एक चीज जोड़े मे बनी है l 

  3. हर एक चीज हरकत में है

नोट : इन सभी सिद्धान्तों में वक्त और मक़ाम (स्पेस & टाइम) यकसा (कॉमन) है जो की सात सिद्धान्तों में से एक है l यही सबकी बुनियाद सबका आधार है जो इनमे अव्वल और आखिर, बातिन और ज़ाहिर है l

  1. हर एक मैटर और नॉन मैटर अपनी शक्लो सूरत के साथ इस कायनात में मौजूद है जिसका अस्तित्व हम इस कायनात में पाते है जो की एटम से बना हुआ है यहाँ कोई भी चीज एसी नहीं है जिसमे एटम का दखल न हो चाहे वो मैटर हो या फिर नॉन मैटर सभी एटॉमिक यूनिवर्स का हिस्सा है कायनात की तमाम तवानाईया और कुव्वते एटॉमिक है जिसे कुरान आलमे मलक कहता है ये सभी इमलाक उसी की मिल्कियत है क्यों की उसी एक अल्लाह ने इसे वजूद दिया अब चाहे मौत और ज़िन्दगी ही क्यों ना हो l ये भी अल्लाह की मख्लूक़ है यही उसका निज़ामे तख्लीक़ है जिसे कुरान मुताशाबिहात कह रहा है जो आखिर भी है और ज़ाहिर भी है यानी मुहकिम उसके हुक्म के ज़ेरे फरमा उसका मुतिए और उसका मुत्तबिए है

  2. हर एक शैय जोड़े में है जब हम निज़ामे कायनात में गौर करते है तो पाते है की हर एक चीज मैटर और नॉन मैटर सभी कुछ जिसका वजूद हम कायनात में पाते है जिसे हम मख्लूक़ कहते है वो सभी अपने अपने जोड़े में है यदि हम इस जोड़े को पारिवारिक जबान में मर्द और औरत की हैसियत में पाते है तो वनस्पति जगत में नर और मादा, और वैज्ञानिक जगत में हम इस जोड़े को पॉजिटिव और नेगेटिव की हैसियत से जानते है बेहरहाल जोड़े का मतलब एक दूसरे के विपरीत आकर्षण को कशिश को जोड़ा कहा जाता है जिससे मिलकर जनरेटिंग प्रोसेस यानी तख्लीकी हरकात वजूद में आती है इस तरह मुह्किमात और मुताशाबिहात भी आपस में एक जोड़ा है बस इसी तरह अल्लाह तबारकतआला इस कायनात को बरकत और वुसअत देता है                     

ْ كُلِّ شَيْءٍ خَلَقْنَا زَوْجَيْنِ لَعَلَّكُمْ تَذَكَّرُونَ   (51/49)

तर्जुमा : हर एक चीज को हमारे द्वारा जोड़े में खलक किया गया है ताकि तुम सब ज़िक्र करो

وَأَنَّهُ خَلَقَ الزَّوْجَيْنِ الذَّكَرَ وَالأنْثَى           (53/49)

तर्जुमा : और बेसक (अल्लाह) उसने खलक किया नर और मादा को जोड़े में                

   

  1. हर एक शैय जो इस कायनात में वजूद रखती है वो सभी हरक़त में है कोई भी शैय चाहे वो मैटर हो या नॉन मैटर छोटे से छोटे और बड़े से बड़े हो सब के सब हरक़त 

में है ये मुत्ताहर्रिक कायनात है कुरान भी इस बात की वजाहत करता है

 

  1. وَهُوَ ٱلَّذِى خَلَقَ ٱلَّيْلَ وَٱلنَّهَارَ وَٱلشَّمْسَ وَٱلْقَمَرَ ۖ كُلٌّۭ فِى فَلَكٍۢ يَسْبَحُونَ 33/21

       

तर्जुमा : और वह (अल्लाह) ही है वो जिसने खलक किया रात और दिन को, सूरज और चाँद को, हर एक चीज फलक में हरकत कर रही है   

यही वो आयाते मुह्किमात है जिसकी बिना पर अल्लाह ने इस कायनात को बेहतर शक्ल ओ सूरत में खल्क किया और उसमे ज़िन्दगी के फलने फूलने के लिए तमाम ज़रूरी ज़राए और उनके तरीकेकार का इन्तिज़ाम किया और इस निज़ामे हक़ को जनवाने और समझाने के लिए उसने इस इंसान की तख्लीक़ की और उसमे अपनी रूह फूंकी ताकि इंसान बसीरत (देखने) वाला और समाअत (सुनने) वाला हो जाये l 


ثُمَّ سَوَّاهُ وَنَفَخَ فِيهِ مِنْ رُوحِهِ وَجَعَلَ لَكُمُ السَّمْعَ وَالأبْصَارَ وَالأفْئِدَةَ قَلِيلا مَا تَشْكُرُونَ   (32/9)

तर्जुमा : जब हमने इसे (आदम) को बराबर (सही) किया यानी हमने उसके अन्दर अपनी रूह फूंकी और उसे हमने बना दिया सुनने और देखने वाला यानी सोचने समझने वाला मगर बहुत थोड़े है जो उसके शुक्र गुजार है l                      

  

الَّذِي جَعَلَ لَكُمُ الأرْضَ فِرَاشًا وَالسَّمَاءَ بِنَاءً وَأَنْزَلَ مِنَ السَّمَاءِ مَاءً فَأَخْرَجَ بِهِ مِنَ الثَّمَرَاتِ رِزْقًا لَكُمْ فَلا تَجْعَلُوا لِلَّهِ أَنْدَادًا وَأَنْتُمْ تَعْلَمُونَ (٢٢)

जैसा की इस आयत मे है की वही है जिसने ज़मीन को तुम्हारे लिए फर्श बनाया और आसमान को छत और आसमान से उसने पानी नाज़िल किया फिर उस पानी से उसने तमाम समारात ज़मीन से खारिज़ कर तुम्हारे लिए उसने रिज्क का इन्तिजाम किया तो तुम उसके साथ किसी को भी शरीक मत करो और तुम इस बात का इल्म भी रखते हो l

यहाँ समझने की बात ये है की ज़मीन को फर्श, आसमान को छत, और पानी से तमाम समारात को बतौर रिज्क इंसान को मुहैया कराना ये सारे ज़रूरी इन्तिजामात की जो शक्ल दी गई वो रहमान के शिफते ख़ास के मुताबिक ही दी गई है ताकि इंसान इसे अपना अमल कर सके कोई कारगुजारी पेश कर सके l

वो रहमान ही है जिसने तुम्हारे लिए तुम्हारी ज़रूरत के मुताबिक तमाम समाने ज़िन्दगी बिला मेहनत मुहैया कराई ताकि इन नेमतों के दरमियाँ इंसान की कारगुजारी देखी जा सके और उसे उसके अमाल का बेहतरीन बदला दिया जाये और उसे दर्जे-ए-कमाल की बुलंदी के साथ अब्दी ज़िन्दगी अता करे 

जिस तरह खालिक हर एक चीज को बनाने का काम करता है उसी तरह रहमान हर एक चीज को कवानीने ज़रुरियात के मुताबिक इंसान के लिए उसमे अमलियात के तमाम असबाब मुक़र्रर करता है ताकि इंसान इन असबाब से अपनी कारगुजारी पेश करे l 

जैसा की सुरह: रहमान मे अल्लाह ने अपनी नेमतों को उसके कवानीन और कमालात के साथ बयान किया है तो आईये हम सूरह: रहमान की कुछ आयते बाला पर गौर करते है 

الرَّحْمَنُ (١)

          अर-रहमान

عَلَّمَ الْقُرْآنَ (٢)

अर-रहमान जिसने सिखाया (कलाम से) पढ़ना 

خَلَقَ الإنْسَانَ (٣)

अर-रहमान जिसने (रूह से) इंसान को खल्क किया 

عَلَّمَهُ الْبَيَانَ (٤)

अर-रहमान जिसने इंसान को (कलाम से) बयान करना सिखाया 

इन चंद आयात के जरिये से रहमान की शिफत को समझाया गया है ताकि लोग जान ले की खालिक किसी चीज को अगर पैदा करता है तो रहमान उसे कानूने रबुबियत के मुताबिक शिफते रहमान के दायरे मे उसमे असबाबे अमलियात (यानी कर्म का सिद्धांत) देता है जो की रहमान का कानून है रहमान की फ़ितरत है l (कोड ऑफ कंडक्ट & लॉ ऑफ आर्डर)

जैसा की सूरेह: रहमान की आयातों के मुताबिक ये मालूम होता है की अगर कोई शैय शिफते खालिक के सबब पैदा की जाती है तो शिफते रहमान उसे कानूने रबुबियत के मातहत हर चीज को अमली अब्दियत देता है (काम देता है)  

الرَّحْمَنُ (١) 

वो रहमान ही है जिसने इंसान को उन तमाम चीजों के बारे मे जो उसके आसपास है उसे जानकारी दी उसे सिखाया उसे इल्म दिया मगर अपनी किताब के जरिये यानी अपने मुक़र्रर करदा कानून कवानीन के मुताबिक (कर्म के सिद्धांतानुशार) और बताया की इल्म वही है जो हमने उसकी अल-किताब से हासिल किया ना कि अपने तही अपने गुमानो और ख़म ख्याल से जिसकी कोई सिम्त कोई राह न हो जो इंसान को उसकी इब्तिदा से लेकर उसकी इन्तिहा तक उसकी रहनुमायी करे और उसे तमाम तकलीफों और परेशानियो से निज़ात बक्से और अम्न अमान के बेहतरीन ज़राए मुहैय्या कराये क्योकि हमारी ज़िन्दगी एक आलामी ज़िन्दगी है नाकि चंद सालाना जो हम इस ज़मीन पर जीते है सिर्फ इस चंद रोज़ की ज़िन्दगी के सामान जुटा लेना उसे हासिल कर लेना इंसान के लिए काफी नहीं है बल्कि हमे समझना होगा और खोजना भी होगा की हमारा वज़ूद क्या सिर्फ इतना ही वक्फा रखता है जितना हम इस दुनिया में देखते है या फिर इसके अलावा भी इसका कोई इन्तिजाम है 

ٱلرَّحْمَـٰنُ

عَلَّمَ ٱلْقُرْءَانَ

خَلَقَ ٱلْإِنسَـٰنَ

عَلَّمَهُ ٱلْبَيَانَ ٤

ٱلشَّمْسُ وَٱلْقَمَرُ بِحُسْبَانٍۢ

وَٱلنَّجْمُ وَٱلشَّجَرُ يَسْجُدَانِ

وَٱلسَّمَآءَ رَفَعَهَا وَوَضَعَ ٱلْمِيزَانَ

أَلَّا تَطْغَوْا۟ فِى ٱلْمِيزَانِ

وَأَقِيمُوا۟ ٱلْوَزْنَ بِٱلْقِسْطِ وَلَا تُخْسِرُوا۟ ٱلْمِيزَانَ

وَٱلْأَرْضَ وَضَعَهَا لِلْأَنَامِ

فِيهَا فَـٰكِهَةٌۭ وَٱلنَّخْلُ ذَاتُ ٱلْأَكْمَامِ

وَٱلْحَبُّ ذُو ٱلْعَصْفِ وَٱلرَّيْحَانُ

فَبِأَىِّ ءَالَآءِ رَبِّكُمَا تُكَذِّبَانِ

خَلَقَ ٱلْإِنسَـٰنَ مِن صَلْصَـٰلٍۢ كَٱلْفَخَّارِ

وَخَلَقَ ٱلْجَآنَّ مِن مَّارِجٍۢ مِّن نَّارٍۢ

فَبِأَىِّ ءَالَآءِ رَبِّكُمَا تُكَذِّبَانِ

رَبُّ ٱلْمَشْرِقَيْنِ وَرَبُّ ٱلْمَغْرِبَيْنِ

فَبِأَىِّ ءَالَآءِ رَبِّكُمَا تُكَذِّبَانِ

مَرَجَ ٱلْبَحْرَيْنِ يَلْتَقِيَانِ

بَيْنَهُمَا بَرْزَخٌۭ لَّا يَبْغِيَانِ      

أَوَلا يَذْكُرُ الإنْسَانُ أَنَّا خَلَقْنَاهُ مِنْ قَبْلُ وَلَمْ يَكُ شَيْئًا (67/19)

और क्या इंसान को इस बात को याद नहीं रखना चाहिये की हमने उसे पहले भी पैदा किया मगर तब वो कोई तखल्लुश (शनाक्त) नहीं रखता था

وَإِذَا قِيلَ لَهُمُ اسْجُدُوا لِلرَّحْمَنِ قَالُوا وَمَا الرَّحْمَنُ أَنَسْجُدُ لِمَا تَأْمُرُنَا وَزَادَهُمْ نُفُورًا (٦٠)

जब इन काफिरों से कहा जाता है की रहमान को सज्दा करो तो ये कहते है की रहमान क्या है जिसके लिए तुम हमे हुक्म देते हो सज्दे का और हम उससे कोई अकीदत नहीं रखते है

تَبَارَكَ الَّذِي جَعَلَ فِي السَّمَاءِ بُرُوجًا وَجَعَلَ فِيهَا سِرَاجًا وَقَمَرًا مُنِيرًا (٦١)

पाक है वो ज़ात-ए-रहमान जिसने आसमान मे तारामंडल बनाया और बना दिया उसमे सूरज को

 रौशनी देने वाला और चाँद को रौशन होने वाला


وَهُوَ الَّذِي جَعَلَ اللَّيْلَ وَالنَّهَارَ خِلْفَةً لِمَنْ أَرَادَ أَنْ يَذَّكَّرَ أَوْ أَرَادَ شُكُورًا (٦٢)

और वही रहमान है जिसने रात और दिन के आने जाने का सिलसिला बनाया उन लोगो के लिए जो इरादा रखते है ज़िक्र का (यानी उसके कानून के मुताबिक ज़िन्दगी के ज़रूरी सामान जुटाना) या जो इरादा रखते है शुक्रगुजारी का (यानी अपनी अहम और ज़रूरी तमामतरीन गिज़ाये हासिल करने और उससे इस्तेफ़ादा उठाने और तशकीन हासिल करने के बाद उसकी रबुबियत का शुक्रगुजार होना)   


وَعِبَادُ الرَّحْمَنِ الَّذِينَ يَمْشُونَ عَلَى الأرْضِ هَوْنًا وَإِذَا خَاطَبَهُمُ الْجَاهِلُونَ قَالُوا سَلامًا (٦٣)

और जो रहमान के बन्दे है वो ज़मीन पर नेकी करते हुए चलते है और जब कोई ज़ाहिल उनसे ख़िताब करता है तो सलाम कहते हुए गुजर जाते है


इन आयातों में भी बताया गया है की वो रहमान ही है जिसने आसमानो और ज़मीन को इंसान की ज़रूरत के मुताबिक बनाया ताकि इंसान यहाँ पर आबाद हो सके क्यों की इस कायनात में आसमान और ज़मीन तो बहुत है मगर वहां ज़िन्दगी के फलने फूलने का कोईं इन्तिजाम नहीं है जिसकी तलाश में साइंसदा आज भी लगे हुए है की या तो कोई गृह ऐसा मिलजाए यहाँ ज़िन्दगी के सामान मुहैया हो या फिर ज़मीन से ज़िन्दगी को किसी ऐसे ग्रह में मुन्ताकिल किया जा सके जंहा इंसान उसे अपनी तकनीकी सलाइहतो और काबिलियत के दम पर आबाद कर सके जिसके खोकले दावे साइंसदा करते आ रहे है लेकिन वो आज भी उसमे नाकामबीयाब है क्यों की बगैर कुव्वते रहमान (गायबाना कुव्वत) के ऐसा करना नामुमकिन है इंसानियत को इस बात को जानना और मानना होगा की इस कायनात में कुछ एसी भी गायबाना कुव्वते काम कर रही है जंहा आज भी इंसान और साइंस नहीं पहुँच सका है सिर्फ इस लिए क्योंकी वो कुव्वत गायब है वो इंसानी शयूर और तमाम हवास की पहुंच से बालातर है 

इस लिए अल्लाह ने कुरान की इब्तदा में ही इस बात को वाज़ह कर दिया है 

الم (١)ذَلِكَ الْكِتَابُ لا رَيْبَ فِيهِ هُدًى لِلْمُتَّقِينَ (٢)الَّذِينَ يُؤْمِنُونَ بِالْغَيْبِ وَيُقِيمُونَ الصَّلاةَ وَمِمَّا رَزَقْنَاهُمْ يُنْفِقُونَ (٣)وَالَّذِينَ يُؤْمِنُونَ بِمَا أُنْزِلَ إِلَيْكَ وَمَا أُنْزِلَ مِنْ قَبْلِكَ وَبِالآخِرَةِ هُمْ يُوقِنُونَ (٤)أُولَئِكَ عَلَى هُدًى مِنْ رَبِّهِمْ وَأُولَئِكَ هُمُ الْمُفْلِحُونَ (٥)إِنَّ الَّذِينَ كَفَرُوا سَوَاءٌ عَلَيْهِمْ ءَأَنْذَرْتَهُمْ أَمْ لَمْ تُنْذِرْهُمْ لا يُؤْمِنُونَ (٦)خَتَمَ اللَّهُ عَلَى قُلُوبِهِمْ وَعَلَى سَمْعِهِمْ وَعَلَى أَبْصَارِهِمْ غِشَاوَةٌ وَلَهُمْ عَذَابٌ عَظِيمٌ (٧)وَمِنَ النَّاسِ مَنْ يَقُولُ آمَنَّا بِاللَّهِ وَبِالْيَوْمِ الآخِرِ وَمَا هُمْ بِمُؤْمِنِينَ (٨)يُخَادِعُونَ اللَّهَ وَالَّذِينَ آمَنُوا وَمَا يَخْدَعُونَ إِلا أَنْفُسَهُمْ وَمَا يَشْعُرُونَ (٩)فِي قُلُوبِهِمْ مَرَضٌ فَزَادَهُمُ اللَّهُ مَرَضًا وَلَهُمْ عَذَابٌ أَلِيمٌ بِمَا كَانُوا يَكْذِبُونَ (١٠)  

की इंसान को हर हाल में रहमान के इस गायबाना मौज्ज़िजात से मुत्मईन होना होगा तभी इसको इस शक और शुबहात से निज़ात मुमकिन हो सकेगी इंशा अल्लाह 

                  जैसा की विज्ञान के ताल्लुक से वैज्ञानिको का मानना ये है की जो चीजे हमे प्रत्यक्ष रूप से दिखाई देती है हम उसे ही सत्य समझते है और उसी का अस्तित्व हम मानते है क्योकि प्रत्यक्ष चीजों का हम अवलोकन कर सकते है उसे जांच परख सकते है नाकि अप्रत्यक्ष चीजों को इसलिए केवल हमारा विश्वास प्रत्यक्ष पर ही है उसके अलावा नहीं वही मज़हबो का मानना इसके विपरीत है उनकी मान्यता का कुल आधार अप्रत्यक्ष पर ही टिका हुआ है ये ऐसा ही हो गया जैसे एक वो शख्स जो कह रहा है की हम इस कायनात (सृष्ठी) के कर्ता को देखकर ही मानेगे नाकि हो रहे कर्म को देखकर और दूसरा शख्स सिर्फ कर्म के आधार पर ही कर्ता को मानने के लिए तैयार है क्योकि वह बाखूब ही जानता है की कर्ता को देखना वो भी एक द्रष्टा के रूप मे हमारे लिए नामुमकिन है इसे केवल उस सिद्धांत की तरह मानना होगा जैसे किसी बीज से किसी दरख्त का वजूद में आना अब यदि कोई कहे की हमे वही बीज दिखाया जाये जिससे ये दरख्त वजूद में आया है तो ऐसा करना और होना दोना ही नामुमकिन है क्योकिं कायनात के नियमानुशार हर चीज अपने अन्दर प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष दोनों नियमो को लिए हुए है और हर चीज के बारे में जानने का तरीका भी अलग अलग है यदि आप भौतिक चीजों को जानना चाहते है तो आप को प्रत्यक्ष के नियमानुशार जाना होगा और यदि आप अभौतिक यानी आध्यात्मिक चीजों के बारे मे जानना चाहते है तो आप को अप्रत्यक्ष के नियमानुशार जाना होगा तभी आप अपने शक और शुब्हात को दूर कर खुद को ज़हनी इत्मिनान दे सकते है                                                            

       शिफाते रहमान अप्रत्यक्ष रूप से कायनात की हर एक चीज मे दाख़िल है जो उसे एक कानूनी शक्ल सूरत देती है जैसे पानी मगर खारा और मीठा, रात और दिन, ज़िन्दगी और मौत    तमाम आयातों और सूरतों को के गौर फ़िक्र के बाद ये नतीजा अखज़ किया गया की इस

 कायनात (ब्रम्हाण्ड) के भौतिकी (दशा) कानून यानी माद्दी कवायिद और कवानीन शिफत-ए-रहमान के सबब रवादवा है ब्रह्माण्ड मे व्याप्त भौतिक के नियम व कानून ही दरअसल शिफत-ए-रहमान है जिसे कुरान आयाते मुह्किमात कहते है ब्रह्माण्ड की दशा ही शनाक्त है शिफाते रहमान की अगर इंसान को शिफत-ए-रहमान के बारे मे जानना है तो भौतिक विज्ञान के बारे मे जानना होगा ब्रह्माण्ड की दशा और उसकी दिशा जाननी होगी तभी हमे रहमान की शनाक्त हासिल होगी (इंशाल्लाह)                       

(تَبَارَكَ الَّذِي جَعَلَ فِي السَّمَاءِ بُرُوجًا وَجَعَلَ فِيهَا سِرَاجًا وَقَمَرًا مُنِيرًا (٦١

तर्जुमा : पाक है वो ज़ात-ए-रहमान जिसने आसमान मे तारामंडल बनाया और बना दिया उसमे सूरज को

रौशनी देने वाला और चाँद को रौशन होने वाला

जैसा की शुरू मे ही बताया गया है की आलामीन आलम की ज़मा है जो की लफ्जे इल्म से बना है जिसके मायने अपने आसपास की भौतिक और आध्यात्मिक जानकारी है यानी माद्दी और गैर माद्दी कुव्वतो को उसके जाहिरी और बातिनी शिफतो के कमाल और जमाल का इल्म ही दरअसल इल्म है और यही इल्म की परिभाषा है जो की इस्म अल्लाह का खुलाशा बा इस्म रहमान के माद्दी हकाहिक़ का बयान भौतिक के नियम और कानून से करती है बहरहाल अगर शिफते रहमान से इस्तिफादा हासिल करना चाहते है तो हमे भौतिक विज्ञान के जरिये माद्दी कुव्वतो और उसके उसूल और कवायिद को बा ख़ूबी जानना होगा तभी हमारी माद्दी नसोनुमा माद्दी तरक्की मुमकिन है और तभी हम उसकी रबुबियते ख़ास जो की उसने बनी आदम पर की है उससे इस्तिफादा हासिल कर सकेंगे और उसकी रहमतों बरकतों के लिए उसके शुक्रगुजार हो सकेंगे                        (इंशाल्लाह)                                     

बा इस्म अल्लाह यानी वो तमाम माद्दी और गैर माद्दी मख्लुकात जिसे अल्लाह ने कवानीन-ए-रहमान और रहीम के मातहत वजूद बक्सा ताकि वो अपने इरादा-ए-रबुबियत को अद्ल और इन्साफ के साथ कायम दायम रखे और इंसान को उसके आमाल के मुताबिक जज़ा दे या सज़ा दे ठीक इसी तरह जब सुलेमान अलै.स. ने मालिका सबा को उसके सल्तनत जो की अल्लाह के कानून कवानीन की मुखालिफ थी और गैर अल्लाह की परसतिस में मुब्तिला थी ख़त भेजा इस पैगामे बिस्मिल्लाह अर-रहमान निर-रहीम के साथ इस पैगामे हक के साथ





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