SECRET OF BISMILLAH (DIRECTION & DIMENSION OF UNIVERSE)









                                           




कर्म के सात यूनिवर्सल सिद्धांत        

  


ये सात आयात दरअसल इस इस किताब की सात कुंजियां है जो इस किताब को खोलती है अल्लाह की सात आयतों मे पहली निज़ामे तख्लीकी पेश है जो की उसके इरादे की बिना पर है और (3-4) नंबर की आयत अल्लाह की क़वानीन-ए-रबुबियत को पेश करती है जो की सब्जेक्टिव है और (5-6) नंबर की आयत क़वानीन-ए-अब्दियत को पेश करती है जो की ओब्जेक्टिव है l  

  1.  इरादा और तख्लीक

  1.  रबुबियत और हिदायत

  1.  रहमान के क़वानीन-ए-अमलियात   (कर्म के सिद्धांत)  और रहीम के क़वानीन-ए-आख़िरत (फल के सिद्धांत)     

  1. तदबीर और तकदीर का मालिक  

  1. ज़राए और वसाइल

  1.  दिशा और दशा

  1.  जज़ा (ईनाम) और सज़ा (गज़ब)


RAFIQUE SIR

NQLP Researcher & Motivator

The School of AL-QURAN

www.mind369.co.in


الَّذِينَ يَذْكُرُونَ اللَّهَ قِيَامًا وَقُعُودًا وَعَلَى جُنُوبِهِمْ وَيَتَفَكَّرُونَ فِي خَلْقِ السَّمَاوَاتِ وَالأرْضِ رَبَّنَا مَا خَلَقْتَ هَذَا بَاطِلا سُبْحَانَكَ فَقِنَا عَذَابَ النَّارِ 3/191))

وَلَقَدْ آتَيْنَاكَ سَبْعًا مِنَ الْمَثَانِي وَالْقُرْآنَ الْعَظِيمَ (15/87)

“और यक़ीनन तेरे द्वारा अता की गयी हमे सात यानी जोड़े (मुह्किमात और मुताशाबिहात) वाली (सूरत) यानी असर अंदाज, मायने खेज़ (किताब) पढायी हुई”

  सात इशारे  

 BY-  RAFIQUE SIR

तमाम तारीफे उस अल्लाह के लिए जिसने तमाम आलम को खल्क किया और साथ साथ उसकी रबुबियत भी फ़रमाया और इंसान की जरूरियात के मद्दे नज़र उसको उसकी कोशिशों के लिए बेहतरीन ज़राए भी मुहैय्या कराया और इंसान के अमाल को परवान चढ़ाया ताकि उसे उसके किये का नतीजा दिया जाये कायनात की इस सच्चाई को अल्लाह की अता करदा इल्मी तौफ़ीक़ से आज इस किताब सात इशारे मे पेश किया जा रहा है जो की अल्लाह के कानून कवानीन पर मबनी इस कायनात के कियाम और इंसान की फितरते हयात के ताल्लुकात को बयान करता है अल्लाह ने सुर: फ़ातिहा के जरिये आलमे इंसानियत को जो सात इशारा दिया है उन इशारो की गौर फ़िक्र के साथ उसकी तावील करने की एक अदना कोशिशो  को आपके पेशे नज़र किया जा रहा है जो की तहकीक से हासिल किया गया इंसानी फह्म है जिसका मक़सद इंसान को कुरान के ताल्लुक से इल्म और हिक़मत का सही नजारिया देना है ताकि इंसान अल्लाह की आयात और उसके दोनो रुख को पूरे तवाज़ुन के साथ अपनी फितरत के एन मुताबिक जांचे और परखे और ऐसा नतीजा अखज़ करे जो उसकी ज़िन्दगी को नशोनुमा दे सके

इंशा अल्लाह

بِسْمِ ٱللَّهِ ٱلرَّحْمَـٰنِ ٱلرَّحِيمِ

ٱلْحَمْدُ لِلَّهِ رَبِّ ٱلْعَـٰلَمِينَ

ٱلرَّحْمَـٰنِ ٱلرَّحِيمِ

مَـٰلِكِ يَوْمِ ٱلدِّينِ

إِيَّاكَ نَعْبُدُ وَإِيَّاكَ نَسْتَعِينُ

ٱهْدِنَا ٱلصِّرَٰطَ ٱلْمُسْتَقِيمَ

صِرَٰطَ ٱلَّذِينَ أَنْعَمْتَ عَلَيْهِمْ غَيْرِ ٱلْمَغْضُوبِ عَلَيْهِمْ وَلَا ٱلضَّآلِّينَ

ये कुरान की पहली सूरत की पहली आयत, पहली निशानी है जो की अल्लाह के तमाम इस्म की बिना पर वजूद में आये अम्र और उसकी तकमील के लिए की गयी तख्लीक़ और उस पैदा करदा मख्लूक़  की रबुबियत के इन्तिज़ाम को अल्लाह ने अपनी शिफते रहमान (कर्म का सिद्धांत देने वाला) और रहीम (कर्म का फल देने वाला) के मुताबिक इस कायनात का इस दुनिया का कियाम किया और इंसान की तरफ उसने अपने इस कौल और फ्येल को कलाम और किताब के जरिये नुए इंसानी के सामने पेश किया है यहाँ पर तमाम आलम (यूनिवर्स) को अल्लाह ने जोड़े में पैदा किया है चाहे वो ज़र्रात हो या फिर उससे बने बेजान और जानदार हो जब हम इस कायनात मे गौर फ़िक्र करते है तो पाते है की तमाम की तमाम कायनात गैर माद्दी (आयते मुहकिमात) और दूसरी है माद्दी (आयते मुतासाबिहात) दो ही सूरतों मे मौजूद है

هُوَ الَّذِي أَنْزَلَ عَلَيْكَ الْكِتَابَ مِنْهُ آيَاتٌ مُحْكَمَاتٌ هُنَّ أُمُّ الْكِتَابِ وَأُخَرُ 

مُتَشَابِهَاتٌ (3/7)

तर्जुमा : अल्लाह ही है जिसने नाजिल किया तुझ पर अपनी अल-किताब को जिसमे आयाते मुह्किमात है आयाते मुह्किमात किताब की बुनियात उसकी जड़ (मूल सिद्धांत) है और दूसरी उसकी मिस्ल (रूपात्मक & लाक्षणिक) है l 

(किताब) कुरान ने इस आयते बाला में अपनी तख्लीक़ को वाजेह किया है की इस कायनात को आयते मुह्किमात को उसके मिस्ल जोड़े मुतासाबिहात से वजूद दिया है यानी गैर माद्दियत जो की अल्लाह का वो अम्र है जिसका अल्लाह ने अपने इस्म के मुताबिक अपने इरादे को  अपने हुक्म से परवान चढ़ाया, जिसके नतीजे मे ये आयाते मुह्किमात (मूल सिद्धांत) और मुतासाबिहात (मिस्ल तख्लीक़) की बिना पर ये कायनात वजूद में आयी फिर अल्लाह ने फिर अल्लाह ने इस कायनात (मुतासबिहात) को अपने कलाम से अल-किताब (मुह्किमात) की हैसियत दी और उसे नोए इंसानी की हिदायत के लिए नाजिल फरमाया और जिन लोगो ने अपनी बेवकूफी (मुफाद) के सबब जब इस किताब की आयतों की इल्मे तख्लीक और इल्मे हक़  से इनकार करते है और उसके मुकाबले में झूठे दलाईल पेश करते है

الَّذِي جَعَلَ لَكُمُ الأرْضَ فِرَاشًا وَالسَّمَاءَ بِنَاءً وَأَنْزَلَ مِنَ السَّمَاءِ مَاءً فَأَخْرَجَ بِهِ مِنَ الثَّمَرَاتِ رِزْقًا لَكُمْ فَلا تَجْعَلُوا لِلَّهِ أَنْدَادًا وَأَنْتُمْ تَعْلَمُونَ (٢٢)وَإِنْ كُنْتُمْ فِي رَيْبٍ مِمَّا نَزَّلْنَا عَلَى عَبْدِنَا فَأْتُوا بِسُورَةٍ مِنْ مِثْلِهِ وَادْعُوا شُهَدَاءَكُمْ مِنْ دُونِ اللَّهِ إِنْ كُنْتُمْ صَادِقِينَ (2/22-23)

तर्जुमा : अल्लाह ही ने तुम्हारे लिए ज़मीन को तुम्हारी (स्तिथि परिसस्तिथि) के मुताबिक तुम्हारे लिए फर्स नुमा जगह बनायी और आसमान को इसके लिए सायबान (मंडप) बनाया जंहा हर एक माद्दियत रखने वाली शै को पनाह दी और आसमान से हमने तुम्हारे लिए पानी उतारा और उस पानी से हमने इस ज़मीन को सहराब किया और उससे तुम्हारे लिए बतौर रिज्क तमाम समारात निकले तो ऐ नोए इंसानी तुम अल्लाह के मद्दे मुकाबिल दूसरो को क्यों उसका ज़ेरे सिफ़त बनाते हो और तुम इस निज़ामे तख्लीक़ का इल्म भी रखते हो और अगर तुम्हे अल्लाह की नाजिल करदा आयाते मुह्किमात जिसे अल्लाह ने अपने बन्दे मुहम्मद (स.अ.व.) पर नाजिल किया उसमे कोई शक हो तो तुम भी एसी ही या इसी की मिस्ल कोई एक आयते मुह्किमात बना लाओ और अपने गवाहों को भी बुला लाओ जिन्हें तुम अल्लाह के जेरे सिफत ठेहराते है और अगर तुम ऐसा न कर सको और तुम हरकिज न कर सकोगे तो खबरदार रहो उस आग के लिए जिसका ईधन आदमी और पत्थर (मिस्ल टेम्प्रेचर) है वह उसमे हमेशा रहेंगे लिहाज़ा इंसान को चाहिए की वो इस निज़ामे तख्लीक़ पर अपनी नज़र दौड़ाए और हकीकत को समझने की कोशिश करे तो आईये अब हम चलते है उस बात की तरफ की अल्लाह ने कैसे   तख्लीक़ करता है 

بَدِيعُ ٱلسَّمَـٰوَٰتِ وَٱلْأَرْضِ ۖ وَإِذَا قَضَىٰٓ أَمْرًۭا فَإِنَّمَا يَقُولُ لَهُۥ كُن فَيَكُونُ   (2/117)

तर्जुमा : वजूद देने वाला आसमानों ( खलाओ ) को और ज़मीन ( माद्दे ) को अपने हुक्म से उस वक्त जिस वक्त वो इरादा करता है किसी काम को करने का तो वो कह देता है लिए उसके हो जा पस वो हो जाता है

तो जब उसने इरादा किया और उसे हुक्म दिया तो उसे कहा की हो जा तो वो उसके हुक्म की बिना पर आयाते मुतासबिहात वजूद में आई और जिसके नतीजे में वक़्त (हरकत) और मकाम (खला) वजूद में आया जिसे हम मुह्किमात कहते है जो माद्दियात की एक सूरत वो है जिसे हम देख सकते है उसका नापतौल कर उसे अपनी ज़रूरत के मुताबिक़ बरत सकते है जिसका अह्तिसाब इंसान अपने अन्दाजे से करता है और दूसरी वो जो हमे बतौर खबर यानी कलाम के जरिये एक किताब की शक्ल में दी गई दिखाई जिसकी मदद से हम अपनी गौर फ़िक्र और तहकीक कर सकते है जिससे हम इल्म हासिल कर सकते है जिसे हम अपने अहसासात और जरूरियात की बिना पर समझ सकते है इन दोनों सूरतों से जो कायनात वज़ूद मे आयी है उसे आलम कहते है आलम इल्म से बना है वो इल्म जो माद्दी (भौतिक) और गैर माद्दी (आध्यात्मिक) कुव्वतो का मुरक्कब है यह पहली आयत में इस कायनात को शिफ़ते रहमान और शिफ़ते रहीम की बिना पर वजूद दिया गया है और इसी बिना पर अल्लाह ने इस यूनिवर्स को एक सिस्टम और एक नेचर दिया इस यूनिवर्स में कोई भी चीज सिस्टम और नेचर से अलग नहीं है चाहे वो एक एटम एक ज़र्रा ही क्यों न हो ये पहली आयत इंसान को इल्म-ए-आफ़ाक और जरुरियाते जिंदगी को इंसानी फ़ितरत की बिना पर  उसकी जानकारी हासिल  करने की तरफ इशारा देती है क्यों की यह कायनात से ही इंसान को अल्लाह ने वजूद हासिल दिया है और उसे इसी कायनात में आबाद भी किया, इसलिए इंसान को अपने जाब्ते हयात के साथ साथ इस कायनात के उसूल और कवायिद भी समझना बहुत ज़रूरी हैl बहर हाल इंसान अल्लाह के अस्माउल हुस्ना की बिना पार बनी दुनिया को उसके कानून-ए-फ़ितरत और अपनी अता करदा फ़ितरत की बिना पर जांचे और परखे फिर उसे तसलीम करे और उस एक अल्लाह की वहदानियत को कुबूल करे उसकी अब्दियत के साथ  ताकि नोए इंसानी इस दुनिया में अपने मसाइल को उसकी मुसख्खर करदा नेमतों से हल कर सके और उसका शुक्र बजा लाये और इस रुए ज़मीन पर अम्न और अमान के साथ फले फूले l जिसके लिए उन कायदे और कवानीन को अल्लाह ने अपनी तमाम शिफ़तों के जरिये मुख्तलिफ सूरतों में इस कायनात मे कायम कर रखा है l                                       

 तो आइये अब हम इस आयत को लफ्ज़ बा लफ्ज़ इसकी हक़ीकत और दलील के साथ समझने की कोशिश करते है

بِسْمِ     اللَّهِ     الرَّحْمَنِ     الرَّحِيمِ      (١)

 (बिस्मिल्लाह)    بِسْمِ اللَّهِ 

ये पहली आयत का पहला अल्फाज़ है जिसकी इब्तिदा हर्फ बा से हुई है जिसे हम अरबी मे हर्फे ज़र कहते है जिसका दो इस्मो को एक दूसरे से जोड़ने का होता है लेकिन इस मे हम देखते है की ये हर्फे बा से ही शुरू हो रही है इसके बाद का इस्म है मगर इसके पहले का कोई इस्म नहीं है इसका मतलब ये नही है की हर्फ बा के पहले कोई इस्म ही नहीं है वो है मगर पोशीदा है यानी वो पोशीदा इस्म है अल्लाह का इरादा जिसे अरबी में हम क़ज़ा कहते है जो की इरादे और फ़ेअल का मज्मुया है जैसा की इस आयते बाला में हमे बताया गया है 

बहर हाल इस आयत को कुरान ने निज़ामे तख्लीक़ के हवाले से पेस किया है की अल्लाह ने इस कायनात को कैसे वजूद बक्सा इस तख्लीक़-ए-कायनात को अल्लाह ने अपने इस्म से    इब्तिदा दी इसको पैदा किया जिसे हम अरबी मे बिस्मिल्लाह कहते है यंहा पर हुरूफ़ बा के पहले तख्लीके कायनात और रबुबियते कायनात को अल्लाह के इस्म से जोड़कर सिफ़ते रहमान और सिफ़ते रहीम के कानून कवानीन की तरफ फितरते कायनात को अल्लाह ने पेश किया है बहरहाल इस आयत से ये वाजेह होता है की अल्लाह ने इस कायनात को वजूद कैसे दिया इस में उसके इस्म का क्या दखल है अब सवाल यहाँ ये उठता है की उसका इस्म यानी कुव्वते (हुक्म) जिसकी मिस्ल कुरान ने यकुलू (फ्येल-ए-हुक्म) से दी है जिसके नतीजे में कुन (फ्येल-ए-इब्तदा) यानी मक़ाम (खला) और वक्त (हरकत) को वजूद में आने को कहा पस वो (यकुनु) वजूद में आ गई जिसका जिक्र सूरत नंबर 2 और आयत नंबर 117 में दिया है जो की आगे आपके सामने आयेगी अब चूँकि हुक्म उसने अपनी सिफत की बिना पर दिया है इसलिए हमे सिफत के बारे में पहले तहकीक करना चाहिए इस माद्दी कायनात को देखते हुए हमारे ज़ेहन में ये ख्याल उठता है कि आखिर सिफत माद्दी है या फिर गैर माद्दी तो आईए हम चलते है दुनिया के नामचीन वैज्ञानिक आइन्सटीन के वैज्ञानिक फोर्मुले E=Mc2, की ओर जो की यह बताता है की माद्दी तवानायी को गैर माद्दी तवानायी में और गैर माद्दी तवानायी को माद्दी तवानायी में एक मुक़र्रर कुव्वत स्पीड ऑफ़ लाइट (300000 km/s)  की बिना पर खला (निर्वात) में बदला जा सकता है अलावा इस साइंसदा की थ्योरी के मुताबिक तवानायी को न तो खल्क किया जा सकता है और न ही ख़त्म किया जा सकता है इसे सिर्फ एक सूरत से दूसरी सूरत में तबदील किया जा सकता है 

आइए अब हम किताबुल्लाह यानी कुरान की तरफ आते है इस थ्योरी को लेकर 

أَوَلَمْ يَرَ الَّذِينَ كَفَرُوا أَنَّ السَّمَاوَاتِ وَالأرْضَ كَانَتَا رَتْقًا فَفَتَقْنَاهُمَا وَجَعَلْنَا     (21/30)

तर्जुमा : क्या नहीं जाना इस हक़ीकत को उन लोगो ने जिन्होंने अल्लाह के वजूद से इन्कार  किया कि आसमान (खला) और ज़मीन (मैटर) थे दोनो गैर मौजूद तो हमने दोनो को एक ज़ोर (ध्वनि) के साथ ला मौजूद किया 

आवाज की ख़ुसूसियत power of sound

जैसा की कुरान कहता है वो लोग अल्लाह के वजूद के ताल्लुक से शको शुबह में पड़े रहते है और इन्कार भी करते है उन लोगो को अल्लाह कायनात की इस सच्चाई की तरफ बुला रहा है इस बात के साथ बतौर दलील कि पहले ना तो कोई अन्तरिक्ष था और ना ही कोई मैटर पस उसने एक ज़ोर के हुक्म (ध्वनि) के साथ खल्क किया और कुरान के मुताबिक कौल यानी ध्वनि का दूसरा रूप उसकी जसामत को ही खला (अंतरिक्ष) कहा गया है जिसे वेदों के मुताबिक ध्वनि और नांद भी कहा जाता है कुरान कौल को ही आवाज (ध्वनि) और खला (अंतरिक्ष) कहता है और मुखालिफ (विरोध) मे कुन वजूद में आता है जिसे कुरान वक़्त और मक़ाम यानी आसमान कहता है और फिर वक्त और आसमान से हरकत वजूद में आती है जिसे हम द्रव उर्जा कहते है साइंस की तहकीक के मुताबिक यूनिवर्स के तमाम द्रव धनात्मक और ऋणात्मक विधुत्व पिण्डों से बने है और दोनो वक़्त और आसमान के ही मुताशाबे (रूपांतरण) है जिसे हम इलेक्ट्रान, प्रोटोन से बना एटम कहते है और इसी एटम से अर्द यानी मैटर्स और नॉन मैटर्स वजूद में आये है जिसे हम हवा, आग, प्रकाश, पानी, मिट्टी आदि कहते है          

بَدِيعُ السَّمَاوَاتِ وَالأرْضِ وَإِذَا قَضَى أَمْرًا فَإِنَّمَا يَقُولُ لَهُ كُنْ فَيَكُونُ(2/117) 

तर्जुमा : जब अल्लाह ने आसमान और ज़मीन को वजूद देने का इरादा किया तो उसने कहा (ध्वनि) लिए उस अम्र के अपने वजूद देने वाले इस्म (अल-बदियु) से, की हो जा तो वह दोनो यानी गैर माद्दियात (आसमान) और माद्दियात (ज़मीन) का इब्तिदा-ए-वजूद हुआ और एक वक्ते मुक़र्रर के दरमियान ज़मीन और आसमान वजूद में आ गए

 ) कुरान के मुताबिक अल्लाह इब्तिदायी फ्येल यकुलू यानी वो कह देता है  يَقُولُ لَهُ كُنْ فَيَكُونُ

आवाज़ के बारे जानने की कोशिश यानी आवाज में मुख्तलिफ खुसुसियात पायी जाती है जैसे आवाज में ना कोई हरकात होती है ना कोई शकनात होती है आवाज में खला होती है क्योंकि आवाज अव्वल और आखिर होती है और इसी वजह से उसमे हरकत पैदा हो जाती है जब हम कायनात में गौर करते है तो पाते है कि हर चीज में आवाज है जंहा तक कि ख़ामोशी में भी आवाज होती है इसमे खला (नांद) भी होता है और इसी नांद में ध्वनि भी होती है मेरा मानना यह है कि हर चीज के अन्दर और बाहर अल्लाह कि आव़ाज एक अम्र की सूरत में मौजूद है क्योंकि अगर हम किसी एक ज़र्रे को लगातार तोड़ते जाये तो हम पाएंगे कि वो ज़र्रा टूटते टूटते सिर्फ आवाज (ध्वनि) रह जाती है और ये नज़ारा हमे स्ट्रिंग थ्योरी के भी और उस पार मिलेगा जंहा पर सारी थ्योरिये ख़त्म हो जाती है क्योंकि जंहा कुछ नहीं होता है जंहा तक के हवा भी नहीं होती है वंहा सिर्फ एक गूँज एक ध्वनि बस रहती है हर एक जगह खला है जंहा तक कि एक ज़र्रे (एटम) में भी 99.999999 जगह खाली होती है जिसे हम इस्म कहते है जब हम इस कायनात में गौर फ़िक्र करते है तो पाते है कि ये कायनात छै अय्याम से वजूद में लायी गई है जिसका जिक्र कुरान यूँ करता है  

وَلَقَدْ خَلَقْنَا السَّمَاوَاتِ وَالأرْضَ وَمَا بَيْنَهُمَا فِي سِتَّةِ أَيَّامٍ  (50/38)

तर्जुमा : और तहकीक से जान लो कि हमारे द्वारा आसमान (खलाए) और ज़मीन (माद्दियात) और इसके दरमियान जो कुछ है (इन दोनो की बिना पर) छै: अय्याम में (आसमान,अर्द,हवा,पानी,आग और रौशनी) खल्क किया है l                          अब चूँकि जब हमने यह जान लिया है कि जो कायनात हमारी निगाह के सामने है वो इन छै: ये बात अलग है की अभी और कभी इंसान को ये दस्तरस हासिल नहीं है लेकिन इंसान इस हकीक़त को जान चुका है जैसा की कुरान कहता है की अल्लाह ने अपने सिफत-ए-इस्म की बिना पे इस माद्दी और गैर माद्दी दुनिया को वजूद दिया है और निज़ामे तख्लीक़ से हमे इस बात का मुशायदा होता है की उसकी हर एक सिफत अपने अंदर कुव्वत और तवानायी रखती है जो की उसके इराद-ए-अम्र को कुव्वते इस्म की बिना पर एक शक्ल-ओ-सूरत में वजूद दे देती है और ये सारा निज़ाम उसकी सिफ़ते ख़ास से ही बरपा हुआ है जिसे हम आलामीन भी कहते है इसलिए दीन इस्लाम में बिस्मिल्लाह को ख़ास इब्तिदायी कलमा की शक्ल दी गयी है ताकि इंसान पहले उसकी निज़ामे तख्लीक़ को जाने और उससे उसके इस्म की शनाक्त करे और उसमे पोशीदा उन कानून क़वानीन की पहचान करे जो उसे उसके वजूद को एक सही सिम्त देते है और उसका अख्लाकी तज्किया भी करते है जिसकी बिना पर इंसान खैरे कसीर के साथ अपनी हयात को कामयाब बनाता है 

 

قُلِ ادْعُوا اللَّهَ أَوِ ادْعُوا الرَّحْمَنَ أَيًّا مَا تَدْعُوا فَلَهُ الأسْمَاءُ الْحُسْنَى وَلا تَجْهَرْ بِصَلاتِكَ وَلا تُخَافِتْ بِهَا وَابْتَغِ بَيْنَ ذَلِكَ سَبِيلا (17/110)

तर्जुमा-: (पुकारो अपने वज़ूद देने वाले खुदा को) अल्लाह कहकर या पुकारो रहमान कहकर, ऐ वो जिसे तुम पुकारते हो (अपनी हाजत के लिए) बराए इन्किसामे मअफूम उसके तमाम इस्म अपने हुस्ने सिफत के साथ मौजूद है पस तुम न पुकारो उसके इस्म को अपनी सलात से जाहिरी (माद्दी) असबाब से और ना ही बातिनी (गैर माद्दी) असबाब से बल्कि तलाश करो पूरे तवाज़ुन के साथ अल्लाह के इस्म के मुताबिक असबाब-ए-सलात यानी अपने लिए रास्ता (मार्ग दर्शन) तो आईए हम अपने रब को उसकी सिफ़तो के साथ उसके अशकार और असबाब के साथ इस निज़ामे तख्लीक़ मे अपनी गौर-ओ-फ़िक्र की बिना पर उसकी किताब और हिक़मत रौशनी मे अपने लिए ऐसे इल्म हकिकी को तलाशे जो हमारे लिए बाईसे नेमत और शुक्र हो                       

      رَبَّنَا آتِنَا فِي الدُّنْيَا حَسَنَةً وَفِي الآخِرَةِ حَسَنَةً وَقِنَا عَذَابَ النَّارِ  (2/201)

तर्जुमा-: ऐ रब हमारे तू हमे दुनिया की भी भलाई अता कर और आख़िरत की भी और बचा हमे आतिशे दोज़ख से                                                    

आईए अब थोड़ा आगे चलते है सुरह फ़ातिहा की पहली आयत मे अल्लाह ने अपने इस्म से माद्दी और गैर माद्दी इस्म  को वजूद में लाया, कुरान के मुताबिक इस्म का मतलब जामये है जो की किसी शैय किसी चीज की इब्तिदा-ए-वजूद से लेकर तकमील-ए-शैय तक की पूरी प्रोसेस को बताता है जिसे कुरान ने इस्म कहा है और अपनी निज़ामे तख्लीक़ को बतौर इस्म के बयान किया की हमने इस कायनात की इब्तिदा एक ज़र्रे एक मैटर से की और उसकी तकमील तक पुह्चाया जिसे हम कायनात, ब्रमांड, और आलामीन भी कहते है जो की मैटर (भौतिक) और नॉन मैटर (अभौतिक या अध्यात्म) से बना है तो आइए पहले हम कायनात के इब्तिदायी पहलु मैटर यानी कुव्वते माद्दा और नॉन मैटर यानी कुव्व्ते गैर माद्दा को समझने की कोशिश करते है                             

मैटर (माद्दियत) का बयान

माद्दा मुज्जसिम होता है वो एक तरह की शक्ल और सूरत रखता है वो फलक में जगह भी लेता है उसमे वज़न भी होता है जिसे देखा और और छूकर महसूस भी किया जा सकता है अलावा इसके माद्दे की तीन सूरते (कंडीशन) भी होती है इन तीनो ही सूरतों में ये कायनात में पाया जाता है जिसे हम ठोस, द्रव और गैस कहते है ये सभी इस कायनात की इब्तिदायी सूरते है जो बाद में अपनी तकमील के साथ कायनात और उसकी मुख्तलिफ सूरतों में हमे नज़र आती है जैसे आसमान, ज़मीन, सूरज, चाँद, सितारे, पहाड़, समुन्दर, दरिया, पेड़ पौधे, जानवर और इंसान ये तमाम सूरते इसी माद्दे और गैर माद्दे का नतीजा है जो की पानी, हवा, रौशनी, ज़मीन और आग के मुज्मुये की शक्ल में हमे मिलता है जिसे उस कुव्व्ते वाहिद ने अपने हुक्म से वजूद बक्शा है जिसे हम इस्म यानी अल्लाह का कौल और उसकी तख्लीक़ (अल-किताब)  कहते है l        

                                   

नॉन मैटर (गैर मादियत) का बयान                                                

नॉन मैटर गैर माद्दियत यानी वो शैय जो वजूद तो रखती हो मगर माद्दियत नहीं रखती हो उसका कोई मुज्जसिमा नहीं होता है ना ही वो किसी तरह की शक्ल और सूरत अख्तियार करती है और ना ही वो कोई जगह कोई मक़ाम लेती है हम इस गैर माद्दियत को सिर्फ और सिर्फ महसूस कर सकते है समझ सकते है मगर उसे हम पकड़ नहीं सकते है उस पर हमारा कोई अप्प्रोच नहीं होता है हम देखते है की इंसान का भी इल्म और इक्तिदार एक हद तक सिर्फ माद्दियत में है नाकि गैर माद्दियत में आज का विज्ञान भी सिर्फ माद्दियत से ही ताल्लुक रखता है और सिर्फ प्रत्यक्ष की ही बात करता है नाकि अप्रत्यक्ष की इंसान का पूरा प्रोग्राम माद्दियत तक ही महदूद है वो इस लिए की इस कायनात के खालिक और मालिक ने अपनी किताब में इस आयत के जरिये इस बात की खबर इंसान को पहले ही दे दी        


وَعَلَّمَ آدَمَ الأسْمَاءَ كُلَّهَا  (31/2)

तर्जुमा – और हमने आदम को इस कायनात के तमाम अस्मा (इस्म की जमा) का इल्म दिया  यानी उसने आदम की हिस को बेदार किया और उसने उसको बसारत और समाअत अता की ताकि आदम शनाक्त (पहचान) कर सके जैसा कि हमने 31/2 की आयत में देखा की वो आदम के इल्म के बारे में सिर्फ अस्मा की तरफ इशारा कर रही है की अल्लाह ने आदम को इस कायनात के तमाम अस्माओ के तमाम मामलात और शकलात के बारे में इल्म और हिक़मत दी ताकि वो इन ज़राए से उसको अपने लिए मुशकखर करे और उससे इस्तिफादा हासिल करे 

ये सूरह: फ़ातिहा की पहली आयत है जुमला इस्मिया है जो की हर्फे ज़र बा से शुरू हो रही है हर्फे ज़र का काम दो इस्मो के बीच हो रहे मामलात को वाजेह करना है अब चूँकि यहाँ पर दो इस्मो में से केवल एक को ही ज़ाहिर किया गया है और दुसरे को पोशीदा रखा गया है वही दूसरी जगह ٱقْرَأْ بِٱسْمِ رَبِّكَ ٱلَّذِى خَلَقَ सूरह: अलक़ की पहली आयत मे अल्लाह ने फ़रमाया “पढ़” अपने रब के इस्म के साथ अपने रब के इस्म से यानी अपने रब के कलाम के मुताबिक पढ़ना है यहाँ “रब” और अम्र “पढ़” के बीच इस्म हर्फ ज़र बा के साथ आया है जिसमे बताया गया है की पढना किस तरह है उसके लिए अल्लाह ने इस्म की ओर इशारा किया है जो की अरबी का लफ्ज़ है जिसे किसी चीज की शनाक्त (पहचान) के लिए इस्तेमाल किया जाता है यहाँ पर इस आयत में रब की शनाक्त की बात कही जा रही है और इंसान शनाख्त उसी चीज की कर सकता है जिसका कोई वजूद हो जिसमे माद्दियत हो इस लिए कुरान ने ज़र्रे से बनने वाली चीजों को और उनकी पहचान को ज़र्रे की शनाख्त को इस्म से तमसील दी और बिसमिल्लाह से उसने इस कायनात की और इस निज़ाम की इब्तदा की ताकि इंसान अपनी खोजबीन के बाद इस नतीजे पर आ सके की इस कायनात का खालिक और मालिक  इस कायनात का रब है जिसने हर एक जानदार और बेजान की तख्लीक़ की है और उसे परवान चढाया तो जिस तरह उसने इस कायनात को और इस इंसान को वजूद दिया है ठीक उसी नज़्म में उसने इंसान को अपने निज़ामे तख्लीक़ को पढ़ने को भी कहा है तो आइये हम इस पहली आयत से पढ़ना शुरू करते है l  


اقْرَأْ بِاسْمِ رَبِّكَ الَّذِي خَلَقَ (98/1)

“पढ़ अपने रब की शनाक्त (यानी उसके कलाम से) के साथ वो जिसे उस एक (रब) ने खल्क किया” (तर्जुमा) 

  इस आयत में अल्लाह हर एक मर्द और औरत को पढने का हुक्म दे रहा है की पढ़ो अपने रब के इस्म यानी उस इल्म के साथ जो अल्लाह ने बा जरिये किताब (अल-कुरान) में नाजिल किया जिसकी बिना पर उसने इस कायनात को खल्क किया है इंसान को इस कायनात की तख्लीक़ को उसके कलाम (इस्म) से ही पढ़ना होगा इसके बनाने वाले को भी इसी कलाम की बिना पर तलाशना होगा की वो कौन है कैसा है जिसने इस कायनात की तख्लीक़ की है                  بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَنِ الرَّحِيم मुताबिका-ए-आयात से अब हम वापिस पर आते है यहाँ पर अल्लाह के इस्म उसकी शनाक्त का इशारा रहमान और रहीम की तरफ है एक निज़ाम की तरफ एक कानून की तरफ मिलता है तो अब हम शिफते रहमान और शिफते रहीम के बारे मे जानने की कोशिश करते है क्योकि अगर हम इस आयत को समझ गए तो इंशा अल्लाह हम पुरे निज़ाम-ए-इलाही को समझ जायेगें और ये एक आयत काफी होगी हमारे अन्दर एक बेहतर नजरिया कायम करने के लिए एक बेहतर सिम्त देने के लिए   इंशा अल्लाह

 فَأَقِمْ وَجْهَكَ لِلدِّينِ حَنِيفًۭا ۚ فِطْرَتَ ٱللَّهِ ٱلَّتِى فَطَرَ ٱلنَّاسَ عَلَيْهَا ۚ لَا تَبْدِيلَ لِخَلْقِ ٱللَّهِ ۚ ذَٰلِكَ ٱلدِّينُ ٱلْقَيِّمُ وَلَـٰكِنَّ أَكْثَرَ ٱلنَّاسِ لَا يَعْلَمُونَ (30/30)

पस ऐ इंसान तू कायम हो जा अपनी पूरी तवज्जो (होश और हवास) के साथ लिए दीन-ए-हक़ (एकेश्वरवाद) ये वो दीन-ए-हक़ है जिसे                                                                   

बा इस्म अल्लाह से मुराद वो तमाम माद्दी और गैर माद्दी मख्लुकात है जिसे अल्लाह ने अपने इरादा-ए-नफ्स यानी नफ्स-ए-रहमत से मुख्तलिफ शनाक्त और पहचान के साथ वज़ूद दिया और उसकी तख्लीक़ की फिर  उसे क़वानीन-ए-रहमान और रहीम के मातहत कद्र किया और उसे परवान चढ़ाया ताकि निज़ाम-ए-रबुबियत का बेहतरीन कियाम किया 


बहरे हाल कहने का मतलब ये है की अल्लाह ने (अपने हुक्म से) माद्दियत और गैर माद्दियत से इस कायनात को बनाया उसकी तख्लीक़ की यानी अगर हम बिस्मिल्लाह की बात करे तो अब तक सिर्फ और सिर्फ अस्माओ को वजूद मिला और ये कायनात वजूद में आयी मगर अब ज़रूरत है इस एक नज़्म देने की एक सिम्त देने की जिसके लिए अल्लाह की सिफ़ते रहमान और शिफाते रहीम का ज़हूर होता है तो आईए अब हम अर-रहमान निर-रहीम की जानिब आते है   







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