अर-रहीम
द्वारा उजागर सार्वभौमिक आयाम
अर-रहीम यानी अल्लाह की वो सिफ़ते ख़ास जो हर एक शैय को उसकी हरकत और उसके अमाल की बिना पर उसका नतीजा मुक़र्रर करती है यानी उसकी आख़िरत, ये आयाते मुताशाबिहात है जो की मुह्किमात का नतीजा है जिसे हिंदी मे हम फल कहते है और अरबी मे आख़िरत l
सिफ़ते रहीम ने जो नैचर जो नतीजा हर एक चीज को दिया और खुसिसी तौर से जो इंसान को अता किया वो भी तीन के जोड़े में से है जिसका बयान नीचे किया गया है मुह्किमात के ही मुताशाबे है l
नोट : इन सभी सिद्धान्तों में वक्त और मक़ाम (स्पेस & टाइम) यकसा (कॉमन) है जो की सात सिद्धान्तों में से एक है l यही सबकी बुनियाद सबका आधार है जो इनमे अव्वल और आखिर, बातिन और ज़ाहिर है l
1. अल्लाह ने इंसान को हर एक चीज के नाम सिखाये जो इस कायनात में मौजूद है उनकी शनाक्त सिखायी ताकि ये उन चीजों को उनके अलग अलग नामों से पुकार सके उनकी पहचान सके उसके लिए इसे अल्लाह ने फर्क करने वाली बसीरत और समात दी जैसा की हम जानते है की कायनात में जितनी भी चीजे है उसका एक नाम होता है और हर एक नाम का एक अर्थ एक मतलब भी होता है जिससे हम उसकी पहचान करते है इसी बात को कुरान कहता है
وَعَلَّمَ آدَمَ الأسْمَاءَ كُلَّهَا (2/31)
तर्जुमा : वही एक (अल्लाह) है जिसने आदम को (कायनात की) तमाम चीजों यानी (मलक) के नाम उसकी शनाक्त सिखायी
2. अल्लाह ने इन्सान को सिर्फ नाम बस नहीं सिखाया बल्कि उसकी फ़ितरत (अद्ल और इन्साफ) भी जिसे हम तवाजुन या बलेंस भी कहते है सिखाया जिसकी मदद से इंसान किसी भी चीज के वजूद यानी उसके अस्तित्व को खोज लेता है और उसकी सच्चाई तक पहुंच जाता है अपनी इस सिफत से वो किसी के वजूद के दो पहलुओं को भी वाज़ह कर देता है यानी उसके जोड़े में फर्क के साथ साथ इन जोड़ो में अल्लाह के कायनाती कानून कवानीन को जान लेता है समझ लेता है की किस शकनात और हरकात के पीछे उसका कौनसा इज़्न कानून उसमे पोशीदा है और इस तरह इंसान किताब की आयाते मुहकिमात और मुताशाबिहात की रहनुमायी में हर एक चीज के खैर और शर को जान लेता है समझ लेता है l
3. अल्लाह ने फितरते इंसानी को सिर्फ शनाक्त और फर्क बस नहीं सिखाया बल्कि इसके साथ साथ इंसान को उसने अपने अमाल की इस्लाह करना यानी गलतियों और खराबियों का सुधार करना भी सिखाया और इसे अल्लाह चीजों की तामीर और ताबीर भी सिखायी जिसके नतीजे में आज हम दुनिया की माद्दी तरक्की को आज की आधुनिक वैज्ञानिक तकनीक की शक्लो सूरत में देखते है और आध्यात्मिक तरक्की को फितरी और गैर फितरी बुराई के मुकाबले नाफिस कानून की शक्लो सूरत में देख रहे है जिसे इस इंसान को जिस तरह पकड़ना था इसने उसे नहीं पकड़ा बल्कि इसने उसे छोड़ा हुआ है l मगर फिर भी अल्लाह ने इंसान को इस लायक जरूर बनाया है की ये अपनी माद्दी इस्लाह (दुनिया) के साथ साथ चाहे तो अपनी अध्यात्मिक (रूहानी) इस्लाह भी कर सकता है l और कुछ लोगो ने किया भी है करते भी है जिन्हें हम मुत्तकी परहेजगार (मोमिन) कहते है l
अर-रहीम अल्लाह की वो शिफते ख़ास है जो इंसान की गौर फ़िक्र के साथ की गई कोशिशों और मेहनतों के नतीज़े को उसकी नीयत और इरादे के मुताबिक उसे अता करता है नाकि सिर्फ उसकी कोशिशों और मेहनतों के मुताबिक ये अध्यात्म की दुनिया की एक बेहतरीन निशानी है जिसे हम इस कायनात में मौजूद पाते है जो की हमारे कर्मो के फल का बेहतरीन निर्णायक होता है जैसा की दुनिया के कुछ धर्मो में यह मानना है की हमारे कर्म ही हमारे फल के निर्णायक है नाकि कोई और शक्ति जैसे ईश्वर उनकी मान्यता है की यदि हम अच्छे कर्म करेंगे तो उसका बदला हमे अच्छा मिलेगा और अगर हम बुरे कर्म करेंगे तो उसका बदला हमे बुरा मिलेगा यानी हमारे अपने कर्म ही हमारे फल के निर्णायक है नाकि की ईश्वर चूँकि हम इस कायनात मे सापेक्षता का सिद्धांत पाते है जैसा की मशहूर वैज्ञानिक अल्बर्ट आन्स्टाईन ने बताया की वक्त और मकान एक दूसरे के रिलेटिव यानी सापेक्ष है उसी तरह यहाँ कुछ लोग कर्म और फल को एक दूसरे का सापेक्ष बता रहे है लेकिन ये धारणा केवल वैज्ञानिक धारणा तक तो ठीक है जो की सिर्फ प्रत्यक्ष के सिद्धांत पर आधारित है और भौतिकवाद है मगर आध्यात्मिक धारणा और सिद्धांत की जब हम बात करते है तो ये धारणा गलत साबित हो जाती है क्योकि आध्यात्म के अनुशार दो चीजों की सापेक्षता हमेशा चौथी चीज पर आधारित होती है जैसा की कुरान कहता है
أَلَمْ تَرَ أَنَّ اللَّهَ يَعْلَمُ مَا فِي السَّمَاوَاتِ وَمَا فِي الأرْضِ مَا يَكُونُ مِنْ نَجْوَى ثَلاثَةٍ إِلا هُوَ رَابِعُهُمْ وَلا خَمْسَةٍ إِلا هُوَ سَادِسُهُمْ وَلا أَدْنَى مِنْ ذَلِكَ وَلا أَكْثَرَ إِلا هُوَ مَعَهُمْ أَيْنَ مَا كَانُوا ثُمَّ يُنَبِّئُهُمْ بِمَا عَمِلُوا يَوْمَ الْقِيَامَةِ إِنَّ اللَّهَ بِكُلِّ شَيْءٍ عَلِيمٌ (58/7)
इस आयते करीमा मे गणित के सम और विसम के सिद्धांत पर चर्चा की गई जिसमे विसम संख्या (3 और 5) से मख्लुकात को ख़िताब किया गया है और सम संख्या (4 और 6) से खुदा की मौजूदगी को ख़िताब किया गया है और इसमे ब्रह्माण्ड के अणु यानी ज़र्रे के सिद्धांत को वज़ेह किया की कोई भी ज़र्रा वजूद नही पाता मगर तीन के जोड़ से यानी तीन से जिसमे दो जोड़े होते है और तीसरा उसका गर्भ उसका रहम उसकी धूरी जिसे हम ज़मा और मका भी कह सकते है ठीक ऐसे ही विज्ञान के अनुशार एक अणु मे तीन अवयव का दखल बताया है जिसमे एक इलेक्ट्रान है दूसरा प्रोटोन है और तीसरा उसका गर्भ नयूक्लउस है जो की इलेक्ट्रान और प्रोटोन की मौजूदगी दिखाता है और उसे बांधे रखता है यानी उसका बैलेंस और ये दोनो अवयव के हिसाब और उनके मार्ग को निश्चितता देता है जो की अप्रत्यक्ष होता है नाकि प्रत्यक्ष और इसके ऊपर भी एक और शक्ति काम करती है जिसे हम ईश्वर, अल्लाह कहते है क्योकि किसी फल के लिए उसका कर्म और कर्म के लिए उसका हिसाब यानी उसका मार्ग उसकी दिशा और दशा का निश्चित करने वाला होना चाहिए तभी हम कर्म और फल के दरमियान एक हिसाब मुक़र्रर कर सकते है वरना दोनो ही अबस और बेकार हो जाएंगे दिशाहीन और दशाहीन हो जाएंगे बहरहाल चूँकि किसी भी कर्म को करने या उसके होने के लिए दिशा और दशा दोनो ही ज़रूरी होते है तभी हम उसके द्वारा उसके फल को प्राप्त कर सकते है जबकि दिशा और दशा दोनो का ताल्लुक गर्भ से रहम से होता है जो की एक अप्रत्यक्ष शक्ति द्वारा वज़ूद मे आता है कुरान के अनुशार जिसे हम रहीम कहते है कर्मो का निर्णायक कहते है फलदाता कहते है इन तमाम गौर और फ़िक्र के बाद ये नतीजा हासिल होता है की कुरान के अनुशार जिसने हमे हरकत के लिए दशा दी वो रहमान है और जिसने हरकत के लिए हमे दिशा दी वो रहीम है और जिसने हमे हरकत दी वो हमारा इलाह हमारा परवरदिगार है यानी बा इस्म अल्लाह रहमान और रहीम से कुरान आलमे इंसानियत को ये पैगाम देता है की इस कायनात की हर एक शैय को अल्लाह ने दिशा और दशा के साथ वज़ूद बक्शा है ताकि तमाम इंसानियत इस बात को जान ले की हमने किसी भी शैय को अबस बेकार नही पैदा किया बल्कि बा मक़सद पैदा किया है ताकि वो अपनी कोशिशों हरकतों के सबब अपने मंजिले मक़सूद को हासिल हो सके बेहतर नतीजा अखज़ कर सके l
कुरान के अनुशार
الَّذِينَ يَذْكُرُونَ اللَّهَ قِيَامًا وَقُعُودًا وَعَلَى جُنُوبِهِمْ وَيَتَفَكَّرُونَ فِي خَلْقِ السَّمَاوَاتِ وَالأرْضِ رَبَّنَا مَا خَلَقْتَ هَذَا بَاطِلا سُبْحَانَكَ فَقِنَا عَذَابَ النَّارِ (١٩١)
वो लोग जो जो खड़े, बैठे और लेटे अल्लाह का ज़िक्र करते है और ज़मीन और आसमान की तख्लीक़ मे गौर फ़िक्र करते हुए इस नतीजे पर पहुँचते है की ऐ हमारे रब तूने किसी चीज को अबस (बातिल) नही बनाया बल्कि हर चीज को तूने एक सिम्त यानी दिशा और दशा दोनो दी है हर चीज बा मक़सद है तो ऐ परवरदिगार हमे तू आतिशे दोज़ख से बचा की हम बेमक़सद कोई अमल करे l हर एक चीज की एक दशा होती है और एक दिशा जिससे हमे उसके वज़ूद का पता लगता है उसके होने का अहसास होता है चूँकि हमारा यूनिवर्स माद्दी और गैर माद्दी दोनो कुव्वतो के नतीज़े मे है लिहाज़ा हमे इन दोनो कुव्वतो को उसकी हालते दशा और दिशा जाननी होगी तब ही हम इस आलम से एक बेहतर नतीजा अखज़ कर सकते है l
فَمَنْ يَعْمَلْ مِثْقَالَ ذَرَّةٍ خَيْرًا يَرَهُ (7/99)
وَمَنْ يَعْمَلْ مِثْقَالَ ذَرَّةٍ شَرًّا يَرَهُ (8/99)
इस आयते बाला मे यह बताया गया है की जो शख्स भी किसी ज़र्रे माद्दी और ज़र्रे गैर माद्दी के अस्काल यानी उसके तमाम एलिमेंट्स पर अमल करेगा वो उसकी सच्चाई उसकी खैर और शर के साथ पा लेगा
إِنِّي وَجَّهْتُ وَجْهِيَ لِلَّذِي فَطَرَ السَّمَاوَاتِ وَالأرْضَ حَنِيفًا وَمَا أَنَا مِنَ الْمُشْرِكِينَ (6/79)
इस आयते बाला मे हज़रत इब्राहीम (अ.स.) के मज़हबी नजारियत को पेस किया गया है की जब इब्राहीम (अ.स.) कायनात का मुज़ाहिरा किया तो उसके नतीजतन उन्होंने कहा बेशक मैं मुतवज्जेह हुआ उस खुदा-ए-यकता की तरफ जिसने आसमान और ज़मीन को फतर किया यानी उसने तमाम माद्दियत और गैर माद्दियत मख्लुकात को इस खला मे एक दशा और एक दिशा दी कोई भी शै अपनी दशा और दिशा से हट कर हरकत नही कर सकती है नही ही आपस मे उनमे कोई तज़ाद है और में भी मुशरिकों मे से नही यानी अपने तहीं अपनी दशा और दिशा को चुनने वाला कोई और सिम्त अख्तियार करने वाला निज़ामे कायनात से हटकर इबराहीम ने अपने आपको मुस्लिम कहा है यानी खुदा दाद फ़ितरत पर कायम रहने वाला उसी की अता करदा दशा और दिशा अख्तियार करने वाला लिहाज़ा हम लोगों को भी चाहिए की रहमान और रहीम के शिफते कानून और क़वानीन के मुताबिक हम अपने ज़िन्दगी को रब्बुलआलमीन की खिदमत में सरे तसलीम ख़म करे यही हमारे लिए रहे निज़ात है जब हम कायनात मे गौर फिक्र करते है तो यह पाते है की इस कायनात की एक रचना संरचना है एक व्यावस्था एक निजाम एक समरसता एक सामंजस्य है एक हरक़त है एक विपरीतता है एक लय है एक कारण है एक नतीजा है एक जोड़ (जोड़ा) है एक दशा और एक दिशा है इस कायनात का एक खुदा है उसकी एक कायनात और उसका एक कानून है और हम सब भी एक आदम से पैदा है और हर एक चीज की हरकत एक ही सिम्त में है और तमाम चीजो की तख्लीक़ भी एक ही ज़र्रे से है लिहाज़ा हम इस कायनात के सिस्टम और नेचर के मुताबिक ही अपने जीवन को कामयाब बना सकते है अलावा इसके नोह इंसानी के लिए इस ज़मीन (प्लेनेट) में कोई और रास्ता नहीं है
बिस्मिल्लाहिर्रहमाननिर्रहीम क्या है और इंसानी ज़िन्दगी में इसका दखल क्या है ?
जवाब-:
فَأَقِمْ وَجْهَكَ لِلدِّينِ حَنِيفًا فِطْرَةَ اللَّهِ الَّتِي فَطَرَ النَّاسَ عَلَيْهَا لا تَبْدِيلَ لِخَلْقِ اللَّهِ ذَلِكَ الدِّينُ الْقَيِّمُ وَلَكِنَّ أَكْثَرَ النَّاسِ لا يَعْلَمُونَ (30/30)
पस ऐ इंसान तू कायम हो जा अपनी पूरी तवज्जो (होश और हवास) के साथ लिए दीन-ए-हक़ (एकेश्वरवाद) ये वो दीन-ए-हक़ है जो की अल्लाह की फ़ितरत यानी उसकी सिफ़ते मुह्किमात जिसके मुताबिक अल्लाह ने इंसान को उसे समझने की फ़ितरत अता की है और जो कुछ उसने अपने हुक्म से पैदा किया है तुम उसमे कोई तबदीली नहीं पयोगे यही अल्लाह का कयाम करदा दीन (निज़ाम-ए-तख्लीक़ और निज़ामे-ए-रबुबियत) है जिसे अकसर लोग नहीं जानते है l
बा इस्म अल्लाह से मुराद वो तमाम माद्दी और गैर माद्दी मख्लुकात है जिसे अल्लाह ने अपने इरादा-ए-नफ्स यानी हुक्म से मुख्तलिफ शनाक्त और पहचान के साथ वज़ूद दिया और उसकी तख्लीक़ की फिर उसे क़वानीन-ए-रहमान यानी मुह्किम किया और रहीम के मातहत यानी मुताशाबे किया और उसे परवान चढ़ाया ताकि निज़ाम-ए-रबुबियत को निज़ाम-ए-तख्लीक़ की बिना पर बेहतरीन तौर से वाज़ेह किया जा सके l
जवाब-: यह आयत जिसे हम बिस्मिल्लाह.... कहते है दरअसल यह एक मुकम्मल अल-किताब है जो की कर्म (अमल) का सिद्धांत है जो की हमारी ज़िन्दगी को जीने की कला देता है यह वो सिद्धांत है जिसे अल-किताब में आयाते मुह्किमात और उस मबनी मुताशाबिहात कहा है इस नोए इंसानियत के सामने इस किताब बिस्मिल्लाह हिर्रेह्मनिर्रहीम को पेश किया है जो हमे इस यूनिवर्स (इस्म) के यूनिवर्सल कर्म का सिद्धांत, मुह्किमात को सिफ़ते रहमान और उसके फल,नतीजा,आख़िरत, मुताशाबिहात को सिफ़ते रहीम की तावील दी है जो की दोनो के बीच के पूरे प्रोसेस (हरकात और उसके शकनात) को बयान करता है जो की पहले इस किताब में आप को बताया जा चुका है तो आएये अब हम सीधे इसके जवाब की ओर चलते है है चूँकि इस यूनिवर्स के सभी भौतिक और अभौतिक नियम कानून यदि हम देखे तो हम पाते है की सभी यूनिवर्सल कानून कवानीन की खूबियाँ हमे अल्लाह की सिफ़तों (इस्म) में बकायदा देखने को मिल जाती है जिसे हम आध्यात्म का नाम देते है और हम इसी अध्यात्मिक (मुह्किमात) कुव्वतो से भौतिक (मुताशाबिहात) शक्तियों (मलक) की शनाक्त कर एक ज़रूरी नतीजा हासिल करते है जो की हमारे लिए इल्मे गैब से अताकरदा कलाम के मुताबिक हमारे लिए मुशख्खर किया गया है ताकि उससे हम अपनी ज़िन्दगी को नसोनुमा दे सके लिहाज़ा ये वही अल्लाह के इस्म है जिसे कुरान अल्लाह की फ़ितरत बता रहा है और उसी फ़ितरत की समझ (रूह) के साथ अल्लाह ने इंसान की तख्लीक की है ताकि इंसान अल्लाह के इन कानून कवानीन का मुशायदा उसकी खूबियों और कमालात के साथ कर सके और उसे इस पर इंसान को गवाह भी ठहराया जा सके लिहाज़ा इसके लिए तख्लीके कायनात को एक सिम्त एक फ़ितरत देना और उसे अपनी सिम्त और फ़ितरत में बाकी रखना बहुत ज़रूरी है इसलिए इंसान अल्लाह की तख्लीक़ में कोई भी तबदीली नहीं पाता तो इंसान को चाहिए की भी कायनात की हर एक शैय की तरह वो भी अपनी फ़ितरत पर एक सिम्त के साथ कायम और दायम रहे यही दीन-ए-फ़ितरत है जिसे दीने इस्लाम कहते है जो की कायनाती हकायक और दलायल के साथ कायम किया गया है तभी इंसान मकामे महमूद पर फायिज़ हो सकता है और तभी इंसान कामयाबी को हासिल कर सकता है और अगर इंसान ने इस कानून कवानीन को नकारा और झुठलाया तो कायनाती कानून कवानीन के मुताबिक इसका जअवाल इसका पतन तय है लिहाज़ा जब भी हम पर बिस्मिल्लाह की तिलावत की जाये तो हम चाहिए की उसकी इताअत और इततबा उसके हक़ के साथ करे तो इंशा अल्लाह हम अपनी मेहनतों अपनी कोशिशों में अल्लाह को साहिबे मदद और नुसरत पाएंगे l
अल्हुम्दुलिल्लाही रब्बिल आलामीन l