
html jpeg
مَالِكِ يَوْمِ الدِّينِ
तर्जुमा : अल्लाह ही मालिक है आयाम-ए-दीन का
यह आयत सुरह फ़ातिहा की 4/1 है जिसमे कुल तीन अल्फाज़ आये है जैसे मालिक, यौम और दीन जो की दीन के सभी आयाम को अल्लाह ही की मिल्कियत ठेहराती है तो आएये सबसे पहले हम यह जान ले की मिल्कियत किसकी होती है और मालिक कौन होता है क्योंकि मुहासिबा करना और मुहासिबा रखना सिर्फ और सिर्फ मालिक का हक़ होता है उसके अलावा किसी को भी अख्तियार नहीं होता की वो किसी का हिसाब रखे क्योंकि हिसाब के लिए उसका अल-कादिर और अल-कदीर होना ज़रूरी है और कादिर और कदीर होने के लिए मुख्तलिफ सलाइहत और शिफतो का होना ज़रूरी है क्योंकि कादिर की ही कुदरत होती है और कुदरत से ही मुक़द्दर यानी मिकदार मुक़र्रर होती है किसी चीज की मिकदार मुक़र्रर करने के लिए उसका शाहिबे कुदरत होना निहायत ज़रूरी है और शाहिबे कुदरत वही होता है जो दरअसल निज़ामे तख्लीक और निज़ामे रबुबियत की कुदरत रखता है जिसे हम निज़ामे कायनात कहते है जिसमे इंसान के लिए निज़ामे तद्बीर और निज़ामे तक़दीर को कायम किया गया है और इंसान को अल्लाह ने शाहिबे तक़दीर और शाहिबे तद्बीर बनाया है ताकि इंसान अल्लाह की आयात-ए-मुह्किमात के साथ निज़ामे रबुबियत पर मुक़र्रर तक़दीर पर कायम रहे और उसे कुबूल करे और उससे इत्मिनान रखे क्योंकि कायनात की मुक़र्रर करदा मिकदार में किसी का भी कोई दखल नहीं है यह मिकदार ही उसके लिए तक़दीर है जिस पर सिर्फ और सिर्फ कादिर का ही दखल है और किसी एक का भी नहीं जैसे जिंदगी और मौत, ठिकाना और मताउन, रत और दिन, भलाई और बुराई, नसबी रिश्ते और नाते, लेन और देन, तंगी और कुशादगी, फायदा और नुकशान, सुख और दुःख, कामयाबी और नाकामयाबी ये सभी मामलात अल्लाह की तरफ से मुक़र्रर करदा है इन पर इंसान का कोई ज़ोर नहीं है अलवा इसके की वो इसे उसकी मर्ज़ी के साथ कुबूल करे और उस पर इत्मिनान भी रखे हाँ मगर आयाते मुताशाबिहात के साथ यानी निज़ामे तख्लीक़ जंहा आसमान है ज़मीन है पहाड़ है समुन्दर है पेड़ पौधे है चरिन्द्र परिन्द्र है एक मुकम्मल निज़ामे फल्कियात और निज़ामे नफ्सियात है यंहा ज़रुरियात ज़िन्दगी के मुख्तलिफ मकामात जिस अल्लाह ने इंसान को तद्बीर करने का हक़ दिया हुआ है जो की इंसान के लिए मुशख्खर भी की गई है जंहा पर ये तद्बीर कर अपने कामो को आसान कर सकता है इसी को कुरान कहता है सुरह अलक की आयत न. 1 में
اقْرَأْ بِاسْمِ رَبِّكَ الَّذِي خَلَقَ (1/96)
तर्जुमा : पढ़ (तू एक मर्द और तू एक औरत) साथ अपने रब के इस्म (यानी मुह्किमात से) वो उसने खल्क (यानी मुताशाबिहात को) किया
इस आयत में हमें हुक्म दिया गया है की हम पढ़े, अध्यन करे उसके हुक्म उसके इज़्न उसके आयाते मुह्किमात के मुताबिक वो जो लीड करती है तमाम निज़ामे कायनात की जो दरअसल उसकी बुनियाद है जिसकी बिना पर इस कायनात को खल्क किया गया है जिसे हमे पढ़ना है जो हमारे लिए तद्बीर के ज़राए और वसाइल है जिनसे इंसान का ताज्किया (विकास) किया जा सकता है लिहाज़ा इंसान अय्यामे दीन की इताअत और इत्तिबा उसके हुक्म उसके इज़्न के मुताबिक ही करे जो उसका मालिक उसका मुहासिब है क्योंकि उसका मालिक ही इंसान की अपनी कोशिशों और काविसो को उसके बेहतर नतीजे और बेहतर मकाम तक पंहुचा सकता है और वही उसका फल दाता भी होता है
قُلِ اللَّهُمَّ مَالِكَ الْمُلْكِ تُؤْتِي الْمُلْكَ مَنْ تَشَاءُ وَتَنْزِعُ الْمُلْكَ مِمَّنْ تَشَاءُ وَتُعِزُّ مَنْ تَشَاءُ وَتُذِلُّ مَنْ تَشَاءُ بِيَدِكَ الْخَيْرُ إِنَّكَ عَلَى كُلِّ شَيْءٍ قَدِيرٌ (٢٦)
तर्जुमा : कहो की अल्लाह ही मालिक है उस तमाम मिल्कियत-ए-मुल्क का, वो इक्तिदार-ए-मिल्कियत अता करता है उसे जिसे वो अता करना चाहता है और वापस ले लेता है इक्तिदार को जिससे वो लेना चाहता है वो इज्ज़त देता है उसे जो इज्ज़त चाहता है वो ज़िल्लत देता है उसे जो ज़िल्लत चाहता है उसी के कब्जे कुदरत में तमाम खैर है बेशक तू (अल्लाह) हर एक शैय पर शाहिबे तक़दीर है
यकीनन हर एक शैय चाहे वो जानदार हो या बेजान उसका शाहिबे कुदरत और शाहिबे तक़दीर सिवाय अल्लाह के कोई और नहीं है और ना ही हो सकता है पस मालिक की पैरवी ही हमारे लिए बाईसे इज्ज़त है और मालिक की मुखालिफत ही हमारे लिए बाईसे ज़िल्लत है कुरान भी अल्लाह की कुदरत की गवाही देते हुए कहता है
يُسَبِّحُ لِلَّهِ مَا فِي السَّمَاوَاتِ وَمَا فِي الأرْضِ لَهُ الْمُلْكُ وَلَهُ الْحَمْدُ وَهُوَ عَلَى كُلِّ شَيْءٍ قَدِيرٌ (1/64)
तर्जुमा : हरकतरवा है हर एक चीज (अपनी सिम्त के साथ) जो आसमानों में है और जो ज़मीन में है और अल्लाह ही के इक्तिदार में तमाम मिल्कियत है और अल्लाह ही के लिए हम्द ( कायनात का कौल और फ्येल) भी है और वही हर एक चीज की मिकदार तय करने वाला है उसे मुकद्दर करने वाला है
وَكُلُّ شَيْءٍ عِنْدَهُ بِمِقْدَارٍ (8/13)
तर्जुमा : और हर एक चीज (चाहे वो जानदार हो या बेजान) अल्लाह के नजदीक मिकदार मे यानी हिसाब में है
ये तो बात हो गई मिकदार की जिसमे तमाम आलमे इंसानियत के लिए एक बहुत बड़ी खबर दी गई है आज भी इंसानों की एक बड़ी तादात माद्दियात के मुत्त्तालिक तो इस कायनाती हकीकत-ए-मिकदार को तो तसलीम करती है मगर हयातियात के ताल्लुक से वो आज भी इस हक़ीकत को मानने को तैयार नहीं है की कायनात का निज़ामे हयात भी अल्लाह की तरफ से मुक़र्रर मिकदार है जो की वक्त और मकाम से भी जुडी हुई है जैसा की कुरान कहता है
وَلَكُمْ فِي الأرْضِ مُسْتَقَرٌّ وَمَتَاعٌ إِلَى حِينٍ (32/2)
तर्जुमा : और मुक़र्रर कर दिया हमने तुम्हारे लिए तुम्हारा ठिकाना (मकाम) और तुम्हारे फायदे (बरतने के सामान) एक मुक़र्रर वक्त तक के लिए
अलावा इसके कुरान ने और भी दलाइल दिए है जो ये साबित करते है की हयातियात भी मुक़र्रर करदा मिकदार में है क्योंकि कुरान के मुताबिक मौत और हयात दोनो ही उसकी खल्क यानी मखलूक है इसलिए इनका भी मिकदार में होना यक़ीनन हकीकी है
الَّذِي خَلَقَ الْمَوْتَ وَالْحَيَاةَ (2/67)
तर्जुमा : अल्लाह ही जिसने खल्क किया है मौत को भी और हयात को भी l
लिहाज़ा इंसान को अल्लाह की मुक़र्रर करदा तक़दीर से ही अपनी तद्बीरे करना चाहिए ताकि इंसान अपने मालिक की कायमकरदा हुदूद में रहकर अपनी कोशिशों को अजाम दे नाकि उन हुदूद के बाहर जाकर कोई काम करे यही उसके लिए खौफ और गम से निज़ात का बेहतरीन तरीका है और इससे ही इसे अम्न और अमान हासिल हो सकता है इसी को कुरान मालिकी यौमे दीन कहता है
ये कुरान की सुरह फ़ातिहा की वो चार आयात है जिसमे अल्लाह तआला ने इस निज़ामे कायनात को अपनी सिफ़तो और खूबियों के साथ पेश किया और इंसान से इस कायनाती निज़ाम के लेन देन और जोड़ को भी बताया है ये आयात तो इंसान की तरफ उसके कायम करदा निज़ाम की खबर दे रही है ताकि ये इसके जरिये से इस्तियानत हासिल कर उसकी अब्दियत में उसकी अताकरदा हिदायत से दाख़िल हो सके और इस कायनाती निज़ाम में मौजूद शर यानी जहालत वो जिसमे इंसान के पास माद्दीयात का इल्म तो होता है मगर उसके पास हिदायत यानी उन्शियत अह्सासे मुहब्बत, शफक्कत, मुआफिकत, अद्ल, इन्साफ, रहम, मेहरबानी, कदरदानी, दियानतदरी, सुजाअत, शदाकत, कुर्बानी, मदद, खसियत, इंसानियत जैसे तमाम रूहानी अकवाल और अफआल दोनो ही नहीं होते है और ये तालीम और तरबियत नश्ले इंसानी को अल्लाह के दीन के अलावा दुनिया के किसी भी उलूम में नहीं मिल सकता है यह वो तालीम है वो अल्लाह अपने मखसूस बन्दों यानी अम्बियाओ से आसमानी रिसालत (किताब) के जरिये हम तक पहुंचता है और जो इंसानी मुआशरा इससे खाली होता है या इससे मुह मोड़ता है उस मुआशरे के अन्दर से अम्न और अमान जाता रहता है और उसके मुकाबले में उसके मुआशरे में बुराई, फाहिसात, फितने और फशाद जैसे जराइम पैदा हो जाते है जो पूरे मुआशरे को अपनी ज़द में ले लेते है और एक न एक दिन वो अपने इन अमालो की वजह से अल्लाह के गज़ब के शिकार हो जाते है इसलिए हमे चाहिए की हम दुनिया के तमाम इल्मो हुनर तो सीखे मगर अल्लाह की अता करदा हिदायात यानी उसके कानून कवानीन से कोई भी गफलत अख्तियार न करे इसी में तमाम आलमे इंसानियत की फलाह और महमूद है l